Patna, 23 अक्टूबर . Patna जिले की दीघा विधानसभा सीट सिर्फ एक चुनावी क्षेत्र नहीं, बल्कि बिहार की बदलती राजनीति और विकास की कहानी का जीता-जागता सबूत है. इस सीट पर सबकी निगाहें टिकी रहती हैं, क्योंकि यहां की ‘महिला वोटर’ किसी भी पार्टी का भाग्य तय करने का माद्दा रखती हैं.
एक कहावत है कि दीघा में जिस तरफ महिलाओं का रुख होता है, जीत उसी पार्टी की होती है. इस शहरी-समृद्ध सीट पर भाजपा की लगातार मजबूत होती पकड़ ने इसे Patna साहिब Lok Sabha क्षेत्र का एक ऐसा अहम खंड बना दिया है, जिसका विश्लेषण किए बिना बिहार की राजनीति अधूरी रहती है.
दीघा विधानसभा क्षेत्र का चुनावी सफर भले ही छोटा हो, लेकिन बेहद रोमांचक रहा है. 2008 में परिसीमन के बाद यह सीट अस्तित्व में आई और 2010 में यहां पहला विधानसभा चुनाव हुआ.
इस चुनाव में जदयू की पूनम देवी ने भारी अंतर से जीत दर्ज कर सीट का खाता खोला. पूनम देवी ने अपने प्रतिद्वंद्वी को बड़े अंतर से मात दी थी. लेकिन, 2015 में कहानी में मोड़ आया. जदयू और भाजपा का गठबंधन टूटा और पूर्व सहयोगी आमने-सामने आ गए. इस कड़े मुकाबले में भाजपा के संजीव चौरसिया ने जीत हासिल की.
इसी तरह, 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू और भाजपा एक बार फिर साथ आ चुके थे. इस बार संजीव चौरसिया ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज कर अपनी पकड़ और मजबूत कर ली. उन्होंने सीपीआई (एमएल) की उम्मीदवार शशि यादव को 46,234 वोटों के अंतर से हराया.
2020 के विधानसभा चुनावों में यहां 4,60,868 पंजीकृत मतदाता थे, जो 2024 के Lok Sabha चुनावों में बढ़कर 4,73,108 हो गए.
यह क्षेत्र केवल 1.76 प्रतिशत ग्रामीण मतदाताओं के साथ पूरी तरह से शहरी है. दीघा में Patna नगर निगम के 14 वार्ड और छह पंचायतें शामिल हैं. पाटलिपुत्र हाउसिंग कॉलोनी जैसे Patna के सबसे समृद्ध और पॉश इलाके भी इसी क्षेत्र का हिस्सा हैं. गंगा नदी के किनारे बसा यह क्षेत्र अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण भी अत्यंत महत्वपूर्ण है.
चुनावी गणित में जातिगत समीकरणों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. यद्यपि जाति-आधारित जनसंख्या का कोई आधिकारिक डेटा नहीं है, लेकिन यहां कायस्थ समुदाय की बड़ी संख्या मानी जाती है, जिसे पारंपरिक रूप से भाजपा का मजबूत समर्थक माना जाता है. इसके अलावा, 2020 के आंकड़ों के अनुसार, यहां अनुसूचित जाति के मतदाता 10.68 प्रतिशत और मुस्लिम मतदाता 9.4 प्रतिशत थे.
दीघा की कहानी जेपी सेतु (जयप्रकाश नारायण सेतु) के जिक्र के बिना अधूरी रहती है. यह पुल सिर्फ स्टील और कंक्रीट का ढांचा नहीं, बल्कि दशकों की Political खींचतान का परिणाम है.
कभी दीघा और पहलेजा घाट के बीच जल परिवहन सेवा चलती थी, जो दक्षिण और उत्तर बिहार को जोड़ती थी. आज उसकी जगह जेपी सेतु ने ले ली है. यह 4,556 मीटर लंबा रेल-सह-सड़क पुल है जो दीघा को सारण जिले के सोनपुर से जोड़ता है. यह असम के बोगीबील पुल के बाद India का दूसरा सबसे लंबा रेल-सह-सड़क पुल है.
हालांकि, इस पुल का निर्माण आसान नहीं था. इसकी राह Political विवादों से घिरी रही. रामविलास पासवान चाहते थे कि यह पुल उनके निर्वाचन क्षेत्र हाजीपुर से जुड़े, तो लालू प्रसाद यादव इसे अपने गृह जिले सारण के सोनपुर से जोड़ना चाहते थे. यह रस्साकशी तब खत्म हुई जब Chief Minister नीतीश कुमार ने हस्तक्षेप किया और सोनपुर को पुल का अंतिम बिंदु घोषित किया.
इस पुल के बनने से पाटलिपुत्र जंक्शन रेलवे स्टेशन की स्थापना हुई, जिससे उत्तर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश (गोरखपुर) के लिए नई रेल सेवाएं शुरू हुईं, जिसने दीघा की कनेक्टिविटी को बदल दिया.
समृद्धि, विशालता और Political उठापटक का केंद्र Patna साहिब Lok Sabha सीट के तहत भाजपा का एक अभेद्य किला बन चुका है. इसकी शहरी पहचान और जातीय समीकरण भाजपा की मजबूत स्थिति के दो प्रमुख स्तंभ हैं.
–
वीकेयू/पीएसके
You may also like
बीच मैच में रोहित शर्मा ने अपने हाथों में ली कप्तानी, देखते रहे शुभमन गिल... दूसरे वनडे में तो गजब ही हो गया
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन 23 अक्टूबर को जारी कर सकता है संयुक्त घोषणा पत्र, जानें
तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री के उम्मीदवार तो बन सकते हैं, लेकिन सीएम कभी नहीं: नित्यानंद राय
कठुआ जिला में धूमधाम से मनाया गया भैया दूज, बहनों ने भाइयों का तिलक कर उसकी लंबी आयु की कामना की
महिला विश्व कप: प्रतिका रावल और मंधाना का शतक, न्यूजीलैंड के खिलाफ भारतीय टीम ने बनाए 340 रन