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बलूचिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा और इस्लामिक स्टेट खुरासान का नया आतंकी गठजोड़

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New Delhi, 7 अक्टूबर . Pakistanी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई, आतंकवादी संगठनों को क्षेत्रीय नीतियों के साधन के रूप में इस्तेमाल करते आए हैं. Pakistan की यह नीति अब और भी गहराती जा रही है.

ताजा रिपोर्ट्स से पता चला है कि Pakistan अब इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (आई ) को अपने हाइब्रिड वॉरफेयर उपकरण के रूप में प्रयोग कर रहा है. वह ऐसा इसलिए कर रहा है ताकि बलूच राष्ट्रवादियों और अफगान तालिबान के उन गुटों को निशाना बनाया जा सके, जो इस्लामाबाद के नियंत्रण में नहीं हैं.

हाल ही में आई की प्रचार पत्रिका ‘यलगार’ में प्रकाशित लेखों ने एक चिंताजनक संकेत दिया है. इस संगठन ने अब जम्मू-कश्मीर में अपनी आतंकी गतिविधियों का विस्तार करने का खुला इरादा जताया है.

सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम Pakistan की ‘डीप स्टेट’ की प्रत्यक्ष प्रेरणा और संरक्षण में उठाया गया है. इस खतरनाक योजना की ताजा कड़ी के रूप में, Pakistan में लश्कर-ए-तैयबा और आई के बीच गुप्त गठजोड़ के प्रमाण सामने आए हैं.

सूत्रों के अनुसार, आईएसआई ने दोनों संगठनों को एक साथ लाकर उनके नेटवर्क, फंडिंग और हथियार आपूर्ति को साझा कराने का नया ढांचा तैयार किया है. हाल ही में सामने आई एक तस्वीर ने इस आतंकी गठबंधन को उजागर कर दिया है. इसमें आई के बलूचिस्तान समन्वयक मीर शफीक को लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर राणा मोहम्मद अशफाक को पिस्तौल भेंट करते देखा गया है. यह फोटो Pakistan की आतंकी संरचना में आईएसआई की गहरी भूमिका का एक और प्रमाण मानी जा रही है.

मुख्य किरदार राणा मोहम्मद अशफाक इस समय लश्कर-ए-तैयबा का ‘नाजिम-ए-आला’ है, जो पूरे Pakistan में संगठन के नए मरकज स्थापित कर रहा है. वहीं, मीर शफीक बलूचिस्तान के पूर्व कार्यवाहक Chief Minister नासिर मेंगल का बेटा है. वह पिछले एक दशक से आईएसआई का प्रमुख सहयोगी माना जाता है. 2010 से उसने आईएसआई के आदेश पर एक निजी ‘डेथ स्क्वॉड’ का संचालन किया, जिसने बलूच राष्ट्रवादी नेताओं और कार्यकर्ताओं की हत्या की. वह 2015 के बाद से आई का मुख्य संपर्क सूत्र बन गया, जिसने मास्टुंग और खुजदार जिलों में आतंकी ठिकाने स्थापित किए. Pakistan की ही एक जॉइंट इन्वेस्टिगेशन टीम रिपोर्ट में 2015 में उसका नाम दर्ज किया गया था.

रिपोर्ट बताती है कि 2018 तक आई को आईएसआई की सीधी मदद से बलूचिस्तान में दो बड़े ऑपरेशनल कैंप मिले. शफीक इन कैंपों का ‘इंचार्ज’ था और हथियारों, पैसों और आतंकियों की आपूर्ति की जिम्मेदारी उसी के पास थी. 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद आईएसआई ने आई को बलूचिस्तान में मजबूत किया. मास्टुंग कैंप को बलूच विद्रोहियों पर हमला करने का काम दिया गया, जबकि खुजदार कैंप अफगानिस्तान में सीमा पार हमलों के लिए सक्रिय रहा.

मार्च 2025 में बलूच विद्रोहियों ने मास्टुंग स्थित आई ठिकाने पर हमला किया, जिसमें लगभग 30 आतंकी मारे गए. इसके बाद आईएसआई ने लश्कर-ए-तैयबा को हस्तक्षेप का आदेश दिया. जून 2025 में लश्कर प्रमुख राणा अशफाक और उसका डिप्टी सैफुल्लाह कसूरी बलूचिस्तान पहुंचे, जहां एक जिरगा में जिहाद की घोषणा की गई. अब सामने आई मीर शफीक मेंगल और राणा अशफाक की तस्वीर इस गठबंधन की औपचारिक पुष्टि करती है.

विश्लेषकों का मानना है कि यह साझेदारी बलूच विद्रोहियों और अफगान तालिबान के उन गुटों पर हमलों के लिए बनाई गई है, जो Pakistan के नियंत्रण से बाहर हैं. लश्कर-ए-तैयबा का बलूचिस्तान में प्रभाव नया नहीं है. क्वेटा स्थित मरकज तकवा, जिसकी अगुवाई अफगान युद्ध के अनुभवी मियां साकिब हुसैन करते हैं, यहां वर्षों से सक्रिय है. 2002 से 2009 तक लश्कर ने यहां प्रशिक्षण शिविर भी चलाए. यही वह जगह है, जहां इंडियन मुजाहिदीन के सह-संस्थापक यासीन भटकल ने 2006 में हथियार प्रशिक्षण प्राप्त किया था.

अब यह आशंका जताई जा रही है कि लश्कर अपने लड़ाकों को आई के साथ मिलाकर बलूच विद्रोहियों के खिलाफ तैनात करेगा. यह ठीक उसी तरह है, जैसे उसने अफगान जिहाद के समय अल-कायदा के साथ गठबंधन किया था. विशेषज्ञों का मानना है कि लश्कर-ए-तैयबा और इस्लामिक स्टेट खुरासान के बीच आईएसआई की मध्यस्थता में हुआ यह गठबंधन Pakistan के आतंकी तंत्र में एक खतरनाक बदलाव का संकेत है. विचारधारात्मक रूप से भिन्न संगठन अब एक ही उद्देश्य से इस्लामाबाद की भू-Political और सांप्रदायिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए काम कर रहे हैं. यह गठजोड़ न केवल बलूचिस्तान और अफगानिस्तान की स्थिरता के लिए बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की शांति के लिए एक गंभीर खतरा बन चुका है.

जीसीबी/एसके

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