US Country Cap News: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार विदेशी छात्रों को लेकर ऐसे फैसले ले रहे हैं, जिसकी वजह से यूएस में पढ़ना मुश्किल हो चुका है। व्हाइट हाउस की तरफ से एक मेमो जारी किया गया है। इसमें एक कैंपस में अंडरग्रेजुएशन की पढ़ाई करने आने वाले विदेशी छात्रों की संख्या 15% तक सीमित करने का प्रस्ताव दिया गया है। इसी तरह से किसी एक देश के 5% से ज्यादा छात्रों को एडमिशन नहीं देने का प्रस्ताव भी दिया गया है। ये फैसला भारत के लिए चिंताजनक है।
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भारत उन देशों में शामिल हैं, जहां के सबसे ज्यादा स्टूडेंट्स हायर एजुकेशन के लिए अमेरिका जाते हैं। फिलहाल ऐसा लग रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप का ये फरमान भारतीय छात्रों के अमेरिका में पढ़ने के अरमान को तोड़ सकता है। हालांकि, यहां ये जानना जरूरी है कि मेमो में जो निर्देश दिए गए हैं, वो सिर्फ अमेरिका की नौ यूनिवर्सिटीज को मिले हैं। बहुत से लोग अब ये सोच रहे हैं कि क्या सच में ट्रंप के फैसले की वजह से भारतीय छात्रों को अमेरिका में पढ़ने में दिक्कतें आने वाली हैं। आइए इस बारे में समझते हैं।
क्या ट्रंप के फैसले से असर होगा?
दरअसल, भारत से अमेरिका पढ़ने जाने वाले ज्यादातर भारतीय मास्टर्स की डिग्री के लिए जाते हैं। अंडरग्रेजुएट कोर्सेज को लेकर भारत से जाने वाले छात्रों की संख्या काफी कम है। खराब से खराब हालात में भी भारतीय आवेदकों के पास अमेरिका में पढ़ने के लिए कई सारे ऑप्शन है और वे 5% वाली लिमिट को पार भी नहीं करेंगे। यहां ये भी जानना जरूरी है कि ट्रंप का फैसला कोई सार्वभौमिक नियम नहीं है, बल्कि ये सरकारी फंडिंग को लेकर रखा गया एक प्रस्ताव है।
फॉर्ब्स के मुताबिक, अमेरिका में अंडरग्रेजुएट की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स की संख्या 1.53 करोड़ है। इसमें विदेशी अंडरग्रेजुएट छात्रों की संख्या लगभग 3.34 लाख है। पिछले साल के मुकाबले इसमें 1.4% की गिरावट भी हुई है। फिलहाल अमेरिका में अंडरग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे विदेशी छात्रों की संख्या महज 2.2% है। इसका मतलब है कि किसी भी अमेरिकी यूनिवर्सिटी में जो 15% की लिमिट लगाई गई है। उसके मुकाबले तो विदेशी छात्रों की संख्या बहुत ज्यादा कम है।
अगर सिर्फ टॉप रैंक वाली यूनिवर्सिटी की बात करें, तो फिर यहां पढ़ने वाले अंडरग्रेजुएट छात्रों की संख्या 60 लाख के आसपास है। लॉन्चपैड रैंकिंग विदेशी छात्रों के लिए उपयुक्त यूनिवर्सिटीज के बारे में बताती है। इस रैंकिंग ने बताया कि टोटल अंडरग्रेजुएट स्टूडेंट्स 61 लाख हैं। विदेशी छात्रों के लिए प्रति कैंपस 15% की लिमिट बताती है कि 9,00,000 से ज्यादा विदेशी छात्र अंडरग्रेजुएट में एडमिशन ले सकते हैं। इसके बाद भी लगभग 6,00,000 सीटें बची रहेंगी।
अगर भारत की बात करें तो भारतीयों के लिए तो लिमिट से ज्यादा सीटें हैं। उदाहरण के लिए अगर सभी यूनिवर्सिटीज की प्रति कैंपस 5% की लिमिट को मिला लें, तो सैद्धांतिक रूप से 3,06,500 भारतीय छात्र अंडरग्रेजुएट कोर्सेज में एडमिशन ले सकते हैं। वहीं अकेडमिक ईयर 2025-26 तक पूरे अमेरिका में लगभग 36,000 हजार भारतीय ही अंडरग्रेजुएट कोर्स की पढ़ाई कर रहे हैं। इसका मतलब है कि आने वाले कई वर्षों तक भारतीयों के पास एडमिशन के लिए पर्याप्त सीटें रहेंगी।
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भारत उन देशों में शामिल हैं, जहां के सबसे ज्यादा स्टूडेंट्स हायर एजुकेशन के लिए अमेरिका जाते हैं। फिलहाल ऐसा लग रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप का ये फरमान भारतीय छात्रों के अमेरिका में पढ़ने के अरमान को तोड़ सकता है। हालांकि, यहां ये जानना जरूरी है कि मेमो में जो निर्देश दिए गए हैं, वो सिर्फ अमेरिका की नौ यूनिवर्सिटीज को मिले हैं। बहुत से लोग अब ये सोच रहे हैं कि क्या सच में ट्रंप के फैसले की वजह से भारतीय छात्रों को अमेरिका में पढ़ने में दिक्कतें आने वाली हैं। आइए इस बारे में समझते हैं।
क्या ट्रंप के फैसले से असर होगा?
दरअसल, भारत से अमेरिका पढ़ने जाने वाले ज्यादातर भारतीय मास्टर्स की डिग्री के लिए जाते हैं। अंडरग्रेजुएट कोर्सेज को लेकर भारत से जाने वाले छात्रों की संख्या काफी कम है। खराब से खराब हालात में भी भारतीय आवेदकों के पास अमेरिका में पढ़ने के लिए कई सारे ऑप्शन है और वे 5% वाली लिमिट को पार भी नहीं करेंगे। यहां ये भी जानना जरूरी है कि ट्रंप का फैसला कोई सार्वभौमिक नियम नहीं है, बल्कि ये सरकारी फंडिंग को लेकर रखा गया एक प्रस्ताव है।
फॉर्ब्स के मुताबिक, अमेरिका में अंडरग्रेजुएट की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स की संख्या 1.53 करोड़ है। इसमें विदेशी अंडरग्रेजुएट छात्रों की संख्या लगभग 3.34 लाख है। पिछले साल के मुकाबले इसमें 1.4% की गिरावट भी हुई है। फिलहाल अमेरिका में अंडरग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे विदेशी छात्रों की संख्या महज 2.2% है। इसका मतलब है कि किसी भी अमेरिकी यूनिवर्सिटी में जो 15% की लिमिट लगाई गई है। उसके मुकाबले तो विदेशी छात्रों की संख्या बहुत ज्यादा कम है।
अगर सिर्फ टॉप रैंक वाली यूनिवर्सिटी की बात करें, तो फिर यहां पढ़ने वाले अंडरग्रेजुएट छात्रों की संख्या 60 लाख के आसपास है। लॉन्चपैड रैंकिंग विदेशी छात्रों के लिए उपयुक्त यूनिवर्सिटीज के बारे में बताती है। इस रैंकिंग ने बताया कि टोटल अंडरग्रेजुएट स्टूडेंट्स 61 लाख हैं। विदेशी छात्रों के लिए प्रति कैंपस 15% की लिमिट बताती है कि 9,00,000 से ज्यादा विदेशी छात्र अंडरग्रेजुएट में एडमिशन ले सकते हैं। इसके बाद भी लगभग 6,00,000 सीटें बची रहेंगी।
अगर भारत की बात करें तो भारतीयों के लिए तो लिमिट से ज्यादा सीटें हैं। उदाहरण के लिए अगर सभी यूनिवर्सिटीज की प्रति कैंपस 5% की लिमिट को मिला लें, तो सैद्धांतिक रूप से 3,06,500 भारतीय छात्र अंडरग्रेजुएट कोर्सेज में एडमिशन ले सकते हैं। वहीं अकेडमिक ईयर 2025-26 तक पूरे अमेरिका में लगभग 36,000 हजार भारतीय ही अंडरग्रेजुएट कोर्स की पढ़ाई कर रहे हैं। इसका मतलब है कि आने वाले कई वर्षों तक भारतीयों के पास एडमिशन के लिए पर्याप्त सीटें रहेंगी।
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