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टारगेट पर तेजस्वी : प्रशांत किशोर के 'बाउंसर', ओवैसी की 'गुगली' और तेज प्रताप के 'स्लोअर' को कैसे खेलेंगे ?

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पटना: तेजस्वी यादव सहयोगी दलों के दबाव से परेशान हैं। गठबंधन में सबसे बड़ा दल होते हुए भी राजद बेबस और असहाय नजर आ रहा है। अपनी शर्तों पर सीट बंटवारा करने वाले लालू यादव का रंग उतरा हुआ है। प्रत्याशियों के चयन के लिए अधिकृत होने के बाद भी उनका रुख रक्षात्मक रहा। अपनी हैसियत के हिसाब वे बात नहीं कह पाये। माना जा रहा है कि तेजस्वी को भविष्य का मुख्यमंत्री बनाने के लिए लालू यादव नरम पड़ गये हैं। न चाहते हुए भी वे कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों का दबाव खामोशी से झेल रहे हैं। सीट बंटवारे के बाद भी तेजस्वी की राह आसान नहीं रहने वाली। उनके लिए यह चुनाव आग का दरिया है जिसे तैर कर पार करना है। प्रशांत किशोर के बाउंसर, ओवैसी की गुगली और तेज प्रताप के स्लोअर बॉल को तेजस्वी कैसे खेलेंगे ?





तेजस्वी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे प्रशांत किशोर!

प्रशांत किशोर (पीके) सियासी पिच पर बहुत तेज गेंदबाजी कर रहे हैं। उन्होंने तेजस्वी यादव को एक तेज बाउंसर डाली है। तेजस्वी इसे डक करते हैं तो भी फजीहत और खेलते हैं तो भी फजीहत। प्रशांत किशोर ने कहा है कि अगर मैं राघोपुर से लड़ा तो तेजस्वी का हाल राहुल गांधी की तरह हो जाएगा। उन्हें इज्जत बचाने के लिए दूसरी सीट पर जाना होगा। जैसे राहुल गांधी अमेठी से वायनाड गये। तेजस्वी की व्यक्तिगत साख के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। तेजस्वी अगर पीके का बाउंसर खेलते (चुनाव लड़ते हैं) तो डिप बाउंड्री पर कैच का खतरा है। राबड़ी देवी राघोपुर में हार चुकी हैं। तेजस्वी अगर पीके के चुनाव लड़ने से हार जाएं तो कोई अचरज नहीं। अगर वे पीके के बाउंसर को डक ( दूसरी सीट पर जाते हैं) कर बचते हैं तो उनकी क्षमता पर सवाल उठने लगेंगे। तेजस्वी की व्यक्तिगत राजनीति भी दांव पर लगी हुई है।





पीके की पहली सूची में 16% मुसलमान, राजद को खतरा

प्रशांत किशोर ने उम्मीदवारों की जो पहली सूची जारी है उससे बड़े दलों के जातीय समीकरण छिन्न-भिन्न हो सकते हैं। इससे राजद को भी नुकसान हो सकता है। पीके ने अपनी पहली सूची में 8 मुस्लिम उम्मीदवरों को टिकट दिया है। 51 में 8 मुस्लिम उम्मीदवार। मतलब जनसुराज की पहली सूची में 16 फीसदी मुसलमानों की भागीदारी है। बिहार में मुसलमानों की आबादी 17.7 फीसदी है। यानी पहले कदम से ही पीके मुसलमानों को आबादी के हिसाब से टिकट दे रहे हैं। बिहार की राजनीति में यह बहुत बड़ा प्रयोग है। अभी तक बिहार में किसी दल ने (AIMIM को छोड़ कर) मुसलमानों को इतनी हिस्सेदारी नहीं दी है। अभी तक मुसलमानों को राजद का कोर वाटर माना जाता था। लेकिन पीके की इस घोषणा से सबसे अधिक राजद को नुकसान हो सकता है।





ओवैसी की गुगली, 32 सीटों पर मुकाबला कठिन असदुद्दीन ओवैसी की गुगली गेंदों के सामने भी तेजस्वी असहाय हैं। कैसे खेलेंगे, पता नहीं। ओवैसी ने अभी तक 32 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। इन 32 सीटों में 24 सीटें ऐसी है जहां मुस्लिम आबादी 24 से 60 फीसदी तक है। जिन मुस्लिम बहुल सीटों पर ओवैसी चुनाव लड़ेंगे वे हैं- बहादुरगंज, कोचाधामन, किशनगंज, अमौर, जोकीहाट, अररिया, बायसी, बलरामपुर, ठाकुरगंज, कदवा, कसबा, प्राणपुर, मनिहारी। ये सीटें सीमांचल में हैं। इसके अलावा AIMIM सीमांचल से बाहर 17 अन्य सीटों पर भी लड़ रही है। ये सीटें हैं सीवान, भागलपुर, नाथनगर, दरभंगा ग्रामीण, केवटी, जाले, गौराबौराम, विस्फी, ढाका (मोतिहारी) नरकटियागंज, गया के शेरघाटी और बेलागंज, नवादा और महुआ। यानी ओवैसी न केवल सीमांचल में बल्कि पूरे बिहार में मुस्लिम वोटों में सेंध लगाएंगे। पिछले चुनाव में इन 32 में से 16 सीटें तेजस्वी के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने जीती थी। 5 सीटें ओवैसी की पार्टी को मिली थीं। 11 सीटों पर एनडीए को जीत मिली थी।





तेज प्रताप एक अप्रत्याशित चुनौती

तेज प्रताप फिलहाल धीमी गेंदबाजी कर रहे हैं। लेकिन कभी- कभी स्लोअर गेंदों पर भी विकेट मिल जाता है। तेज प्रताप यादव, तेजस्वी के लिए एक अप्रत्याशित चुनौती हैं। कल तक साथ थे, आज विरोध में हैं। उनकी नजर भी यादव-मुस्लिम बहुल सीटों पर ही है। यादवों के बीच उनकी कृष्ण भक्त की छवि काम कर सकती है। वैसे तो तेज प्रताप कोई बड़े नेता नहीं हैं लेकिन बहुत लोग उन्हें साफ दिल वाला राजनीतिज्ञ मानते हैं। इस छवि का चुनाव में उन्हें लाभ मिल सकता है। चुनाव के दौरान तेजस्वी को पहली बार घरेलू मोर्चे पर भी जूझना होगा। रोहिणी आचार्य विवाद के बाद तेजस्वी और उनके सलाहकार सांसद संजय यादव दबाव में हैं। वे खुल कर तेज प्रताप यादव का विरोध नहीं कर सकते। हाल ही में तेज प्रताप ने जो जनसम्पर्क अभियान चलाया था उसे ठीक-ठीक समर्थन मिला था। वे तेजस्वी को कितना नुकसान पहुंचा पाएंगे, यह उनके उम्मीदवारों की घोषणा के बाद ही स्पष्ट होगा।

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