लेखक: चंद्रभूषण
स्वीडन तकनीकी तौर पर नाटो का सदस्य पिछली नोबेल घोषणा से कुछ महीने पहले ही बन गया था, लेकिन इस महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव से जुड़े आर्थिक और कूटनीतिक दबावों की आशंका पिछले साल उतनी ज्यादा नहीं थी। वैसे भी, 2024 के नोबेल पुरस्कार इसके समूचे इतिहास में काफी स्तरीय माने गए थे। अमेरिकी दबाव में स्वीडन का डिफेंस बजट बढ़ने के साथ नोबेल स्क्रीनिंग का खर्चा और साथ में पुरस्कारों का स्तर भी नीचे जाने का डर इस बार कहीं ज्यादा था, और यह अंदाजा कुछ हद तक सही साबित हुआ। 2025 में घोषित ज्यादातर नोबेल पुरस्कारों में वैसी कोई चमक नहीं है, जिसे चौंककर देखा जाए और आने वाले समय पर जिसका बड़ा प्रभाव महसूस किया जाए।
अवॉर्ड न मिलने की चर्चा: शांति के क्षेत्र में दिए गए नोबेल पुरस्कार पर बात करें तो इसमें एक ध्रुवीकरण का तत्व शामिल था। सबसे बड़ा कमाल यह कि किसी को यह प्राइज मिलने पर जितनी बातें हुईं, उससे कहीं ज्यादा बातें किसी को इसके न मिलने पर हुईं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कम से कम छह महीने से खुद ही 'पीस नोबेल' के सबसे बड़े दावेदार बने हुए थे। पूरी सात लड़ाइयां रुकवा देने का उनका दावा था और पाकिस्तान, इजरायल तथा कंबोडिया के प्रधानमंत्रियों ने उनकी अनुशंसा कर रखी थी। सो, अपने ही एक खास के पास इसका चले जाना उन्हें अच्छा तो नहीं लगा होगा।
संपदा सृजन पर जोर: अर्थशास्त्र का नोबेल कहलाने वाला पुरस्कार पिछले दो-तीन वर्षों से विषमता के चर्चित अर्थशास्त्री टॉमस पिकेटी और इसी मिजाज के एक अर्थशास्त्री गैब्रिएल जुकमान को मिलने की बात कही जा रही है। लेकिन अर्थशास्त्र दुनिया की मुख्यधारा निर्धारित करने वाला शास्त्र है और नोबेल चयन समिति की कोशिश मुख्यधारा का मिजाज दिखाने की होती है। इस बार पुरस्कृत अर्थशास्त्री तीन अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े हैं और उनका काम संपदा के वितरण से नहीं, उसके सृजन से जुड़ा है।
इस बार भी गद्य: रही बात साहित्य की तो इसमें गद्य को पुरस्कृत करने का सिलसिला इस बार भी जारी रहा, लेकिन हान कांग, योन फुस्से और अब्दुल रजाक गुर्ना के तकलीफ से भरे यथार्थवाद की तुलना में 2025 की साहित्यिक चयन समिति ने ठेठ फैंटेसी को नोबेल से नवाजने का फैसला किया है। हालांकि साहित्य का नोबेल इस बार भी आसान मनोरंजन उपलब्ध कराने वाले किसी कशीदाकार को नहीं, गहरी बेचैनी को रेखांकित करने वाले फैंटेसी लेखक लेस्लो क्रॉस्नोहोर्काई को ही मिला है। वे भाषा के साथ बड़े प्रयोग करने वाले लेखक हैं, लेकिन उनकी विधा ऐसी है, जिसमें दुनिया की ठोस शक्लें जरा देर में नजर आती हैं।
मचाडो का दम: शांति का नोबेल पाने वाली वेनेजुएला की मुख्य विपक्षी नेता मारिया कोरिनो मचाडो की ख्याति विपरीत परिस्थितियों में डटी रहने वाली राजनेता की रही है। हालांकि इस दक्षिण अमेरिकी देश के शीर्ष नेता लंबे समय से अमेरिका के निशाने पर हैं। लेकिन कुछ समय पहले वेनेजुएला में हुए आम चुनावों के नतीजे पर क्यूबा और ब्राजील जैसे घोर अमेरिका विरोधी देशों ने भी हामी नहीं भरी है। यानी मचाडो की ओर से उठाई जा रही चुनावी धांधली की बात में दम है।
भौतिकी नोबेल की विशिष्टता: यहां विज्ञान के तीनों पुरस्कारों के क्षेत्र के बारे में भी थोड़ी बात कर ली जाए। भौतिकी में यह बड़ी मशीनों के बजाय छोटे उपकरणों में क्वांटम मेकेनिकल टनेलिंग और क्वांटाइज्ड एनर्जी सर्किट के विकास में बुनियादी काम के लिए दिया गया है। क्वांटम कंप्यूटर और क्वांटम सेंसर से जुड़े क्षेत्रों में इस काम के जलवे आगे भी दिखेंगे।
सूखी हवा से पानी: केमिस्ट्री में 2025 का नोबेल सूक्ष्म स्तर की छन्नियों के विकास के लिए मिला है, जिससे कार्बन डायॉक्साइड सोखी जा सकती है और रेगिस्तान की बिल्कुल सूखी हवा से भी पानी निकाला जा सकता है। मेडिसिन का नोबेल शरीर की प्रतिरोधी प्रणाली पर काम के लिए दिया गया है- खासकर गठिया या कैंसर जैसे हालात के लिए, जब शरीर खुद को ही मारने में जुट जाता है।
बनी रहे छवि: नोबेल पुरस्कार देने वाले मुल्क स्वीडन के बारे में आम राय यही रही है कि वह किसी का दबाव नहीं मानता। दुनिया के जो हालात हैं, उसमें किसी न किसी खेमेबंदी का हिस्सा बनना हर देश की मजबूरी है। फिर भी, नोबेल को एक देश से बांधकर कोई नहीं देखता और उसकी यह छवि आगे भी बनी रहे तो बेहतर है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
स्वीडन तकनीकी तौर पर नाटो का सदस्य पिछली नोबेल घोषणा से कुछ महीने पहले ही बन गया था, लेकिन इस महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव से जुड़े आर्थिक और कूटनीतिक दबावों की आशंका पिछले साल उतनी ज्यादा नहीं थी। वैसे भी, 2024 के नोबेल पुरस्कार इसके समूचे इतिहास में काफी स्तरीय माने गए थे। अमेरिकी दबाव में स्वीडन का डिफेंस बजट बढ़ने के साथ नोबेल स्क्रीनिंग का खर्चा और साथ में पुरस्कारों का स्तर भी नीचे जाने का डर इस बार कहीं ज्यादा था, और यह अंदाजा कुछ हद तक सही साबित हुआ। 2025 में घोषित ज्यादातर नोबेल पुरस्कारों में वैसी कोई चमक नहीं है, जिसे चौंककर देखा जाए और आने वाले समय पर जिसका बड़ा प्रभाव महसूस किया जाए।
अवॉर्ड न मिलने की चर्चा: शांति के क्षेत्र में दिए गए नोबेल पुरस्कार पर बात करें तो इसमें एक ध्रुवीकरण का तत्व शामिल था। सबसे बड़ा कमाल यह कि किसी को यह प्राइज मिलने पर जितनी बातें हुईं, उससे कहीं ज्यादा बातें किसी को इसके न मिलने पर हुईं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कम से कम छह महीने से खुद ही 'पीस नोबेल' के सबसे बड़े दावेदार बने हुए थे। पूरी सात लड़ाइयां रुकवा देने का उनका दावा था और पाकिस्तान, इजरायल तथा कंबोडिया के प्रधानमंत्रियों ने उनकी अनुशंसा कर रखी थी। सो, अपने ही एक खास के पास इसका चले जाना उन्हें अच्छा तो नहीं लगा होगा।
संपदा सृजन पर जोर: अर्थशास्त्र का नोबेल कहलाने वाला पुरस्कार पिछले दो-तीन वर्षों से विषमता के चर्चित अर्थशास्त्री टॉमस पिकेटी और इसी मिजाज के एक अर्थशास्त्री गैब्रिएल जुकमान को मिलने की बात कही जा रही है। लेकिन अर्थशास्त्र दुनिया की मुख्यधारा निर्धारित करने वाला शास्त्र है और नोबेल चयन समिति की कोशिश मुख्यधारा का मिजाज दिखाने की होती है। इस बार पुरस्कृत अर्थशास्त्री तीन अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े हैं और उनका काम संपदा के वितरण से नहीं, उसके सृजन से जुड़ा है।
इस बार भी गद्य: रही बात साहित्य की तो इसमें गद्य को पुरस्कृत करने का सिलसिला इस बार भी जारी रहा, लेकिन हान कांग, योन फुस्से और अब्दुल रजाक गुर्ना के तकलीफ से भरे यथार्थवाद की तुलना में 2025 की साहित्यिक चयन समिति ने ठेठ फैंटेसी को नोबेल से नवाजने का फैसला किया है। हालांकि साहित्य का नोबेल इस बार भी आसान मनोरंजन उपलब्ध कराने वाले किसी कशीदाकार को नहीं, गहरी बेचैनी को रेखांकित करने वाले फैंटेसी लेखक लेस्लो क्रॉस्नोहोर्काई को ही मिला है। वे भाषा के साथ बड़े प्रयोग करने वाले लेखक हैं, लेकिन उनकी विधा ऐसी है, जिसमें दुनिया की ठोस शक्लें जरा देर में नजर आती हैं।
मचाडो का दम: शांति का नोबेल पाने वाली वेनेजुएला की मुख्य विपक्षी नेता मारिया कोरिनो मचाडो की ख्याति विपरीत परिस्थितियों में डटी रहने वाली राजनेता की रही है। हालांकि इस दक्षिण अमेरिकी देश के शीर्ष नेता लंबे समय से अमेरिका के निशाने पर हैं। लेकिन कुछ समय पहले वेनेजुएला में हुए आम चुनावों के नतीजे पर क्यूबा और ब्राजील जैसे घोर अमेरिका विरोधी देशों ने भी हामी नहीं भरी है। यानी मचाडो की ओर से उठाई जा रही चुनावी धांधली की बात में दम है।
भौतिकी नोबेल की विशिष्टता: यहां विज्ञान के तीनों पुरस्कारों के क्षेत्र के बारे में भी थोड़ी बात कर ली जाए। भौतिकी में यह बड़ी मशीनों के बजाय छोटे उपकरणों में क्वांटम मेकेनिकल टनेलिंग और क्वांटाइज्ड एनर्जी सर्किट के विकास में बुनियादी काम के लिए दिया गया है। क्वांटम कंप्यूटर और क्वांटम सेंसर से जुड़े क्षेत्रों में इस काम के जलवे आगे भी दिखेंगे।
सूखी हवा से पानी: केमिस्ट्री में 2025 का नोबेल सूक्ष्म स्तर की छन्नियों के विकास के लिए मिला है, जिससे कार्बन डायॉक्साइड सोखी जा सकती है और रेगिस्तान की बिल्कुल सूखी हवा से भी पानी निकाला जा सकता है। मेडिसिन का नोबेल शरीर की प्रतिरोधी प्रणाली पर काम के लिए दिया गया है- खासकर गठिया या कैंसर जैसे हालात के लिए, जब शरीर खुद को ही मारने में जुट जाता है।
बनी रहे छवि: नोबेल पुरस्कार देने वाले मुल्क स्वीडन के बारे में आम राय यही रही है कि वह किसी का दबाव नहीं मानता। दुनिया के जो हालात हैं, उसमें किसी न किसी खेमेबंदी का हिस्सा बनना हर देश की मजबूरी है। फिर भी, नोबेल को एक देश से बांधकर कोई नहीं देखता और उसकी यह छवि आगे भी बनी रहे तो बेहतर है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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