किवंदंती के अनुसार एक प्रतापी राजा की एक हजार रानियों में से केवल एक कन्या ने ही जन्म लिया था, जिसका नाम ’सुकन्या’ रखा गया। इकलौती संतान होने की वजह से उसे खूब लाड़ प्यार से पाला गया, एक बार सुकन्या जंगल से फूल लेने गई वहाँ उसने एक ऋषि (च्यवन) को तपस्या करते पाया जिनका पूरा शरीर मिट्टी से ढक चुका था सिर्फ आँखें ही नजर आ रही थीं। सुकन्या ने गलती से उनकी आंखे फोड़ दीं, खून बहने लगा। ऋषि कोई श्राप ना दे दें उनके क्रोध से व राज्य व गृहस्थ में शांति रहे, सुकन्या का विवाह ऋषि च्यवन के साथ कर दिया गया।
कार्तिक मास के एक दिन सुकन्या झील से पानी लेने गई, वहां उसने एक नाग कन्या को कीमती वस्त्र व जेवर पहने सूर्य की पूजा करते देखा। सुकन्या के पूछने पर उसने बताया कि कार्तिक मास में मानव कल्याण के लिए छठ पूजा का उत्सव मनाया जाता है। सुकन्या ने भी उसके बताए अनुसार व्रत रख पूर्ण रीति रिवाज से सूर्य का पूजन किया जिसके परिणाम स्वरूप उसके पति (ऋषि च्यवन) को नेत्र ज्योति वापिस मिल गई। एक अन्य कथा अनुसार एक वृद्धा स्त्री थी, उसके कोई संतान नहीं थी।
कार्तिक माह शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि के दिन उसने संकल्प किया, कि यदि उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी, तो वह पूर्ण विधि-विधान से सूर्य षष्ठी व्रत करेगी। कुछ समय बाद सूर्य देवता की कृपा से वृद्धा, मां बनी और उसने एक लड़के को जन्म दिया। लेकिन उसने अपना संकल्प पूरा नहीं किया अर्थात् व्रत नहीं किया। समय बीतता गया और लड़का विवाह योग्य भी हो गया लेकिन वृद्धा ने अभी तक व्रत नहीं किया। लड़के के विवाह के बाद पालकी से लौटते समय वधू ने पालकी में अपने पति को मरा पाया और विलाप करने लगी। उसका रोना सुनकर एक बूढ़ी स्त्री उसके पास आकर बोली, ”मैं छठ माता हूँ, तुम्हारी सास सदैव मुझे फुसलाती रही है। उसने संकल्प करके भी मेरी पूजा नहीं की। अब तो मैं तुम्हारे पति को जीवित किए देती हूँ, लेकिन अपने घर जाकर, सास से इस विषय में जरूर पूछना।“ उसके इतना कहते ही वह जीवित होकर उठ गया। वधू ने घर जाकर सास से सारी वार्ता कही। सास ने अपनी भूल स्वीकार करी और सूर्य षष्ठी का व्रत करने लगी, तभी से इस व्रत को जोरों से प्रचलन आरम्भ हुआ।
कार्तिक मास के एक दिन सुकन्या झील से पानी लेने गई, वहां उसने एक नाग कन्या को कीमती वस्त्र व जेवर पहने सूर्य की पूजा करते देखा। सुकन्या के पूछने पर उसने बताया कि कार्तिक मास में मानव कल्याण के लिए छठ पूजा का उत्सव मनाया जाता है। सुकन्या ने भी उसके बताए अनुसार व्रत रख पूर्ण रीति रिवाज से सूर्य का पूजन किया जिसके परिणाम स्वरूप उसके पति (ऋषि च्यवन) को नेत्र ज्योति वापिस मिल गई। एक अन्य कथा अनुसार एक वृद्धा स्त्री थी, उसके कोई संतान नहीं थी।
कार्तिक माह शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि के दिन उसने संकल्प किया, कि यदि उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी, तो वह पूर्ण विधि-विधान से सूर्य षष्ठी व्रत करेगी। कुछ समय बाद सूर्य देवता की कृपा से वृद्धा, मां बनी और उसने एक लड़के को जन्म दिया। लेकिन उसने अपना संकल्प पूरा नहीं किया अर्थात् व्रत नहीं किया। समय बीतता गया और लड़का विवाह योग्य भी हो गया लेकिन वृद्धा ने अभी तक व्रत नहीं किया। लड़के के विवाह के बाद पालकी से लौटते समय वधू ने पालकी में अपने पति को मरा पाया और विलाप करने लगी। उसका रोना सुनकर एक बूढ़ी स्त्री उसके पास आकर बोली, ”मैं छठ माता हूँ, तुम्हारी सास सदैव मुझे फुसलाती रही है। उसने संकल्प करके भी मेरी पूजा नहीं की। अब तो मैं तुम्हारे पति को जीवित किए देती हूँ, लेकिन अपने घर जाकर, सास से इस विषय में जरूर पूछना।“ उसके इतना कहते ही वह जीवित होकर उठ गया। वधू ने घर जाकर सास से सारी वार्ता कही। सास ने अपनी भूल स्वीकार करी और सूर्य षष्ठी का व्रत करने लगी, तभी से इस व्रत को जोरों से प्रचलन आरम्भ हुआ।
You may also like

ध्वस्तीकरण का दर्द: मेरठ में जमींदोज हुआ 22 दुकानों का कॉम्प्लेक्स, मलबे में दब गए दुकानदारों के सैकड़ों सपने

बीच रास्ते में गाड़ी कभी नहीं देगी धोखा, बस इन बातों का हमेशा रखें ध्यान

Anant Singh: धड़ाम से गिरे अनंत सिंह, चुनावी जनसंपर्क के दौरान टूटा मंच, बाल-बाल बचे बाहुबली

IPL Auction: हर साल कौन रहे हैं आरसीबी के सबसे महँगे खिलाड़ी? देखें पूरी लिस्ट

पाकिस्तान के सिंध में 13 लाख बच्चे कर रहे बाल मजदूरी, 65% कृषि क्षेत्र में फंसे




