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जितेंद्र कुमार Exclusive: मेरे सपने सुन मां-बाप के सपने हिल गए, पापा चाहते थे हम सिविल इंजीनियरिंग फर्म खोले

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'कोटा फैक्‍ट्री' के जीतू भैया, 'पंचायत' के सचिव जी, 'जादूगर' के मीनू नारंग, और अब 'भागवत चैप्‍टर 1' के प्रोफेसर समीर। कहना गलत नहीं होगा कि जितेंद्र कुमार ने अपनी सादगी और सधी हुई एक्‍ट‍िंग से हर रोल में रंग जमाया है। राजस्‍थान के अलवर में पैदा हुए जितेंद्र ने आईआईटी, खड़गपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। तब शायद किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि वह इंजीनियरिंग की दुनिया छोड़ एक्‍ट‍िंग से इस कदर दिल लगा बैठेंगे। IIT के दिनों में जितेंद्र वहां की ड्रामा सोसाइटी से जुड़े थे और वहीं उनकी मुलाकात TVF के बिस्‍वपति सरकार से हुई। इसके बाद यह जोड़ी क्‍या रंग लाई, वह दुनिया देख चुकी है। नवभारत टाइम्‍स से खास बातचीत में जितेंद्र कुमार ने अपने करियर की इस मजेदार यात्रा पर दिल खोलकर बात की है। वह हंसते हुए कहते हैं, 'मेरे सपने सुनकर तो मेरे मां-बाप के सपने भी हिल गए थे।'

आईआईटी, खड़गपुर से आपने चार साल की पढ़ाई की और उसके बाद आप सीधा एक्‍ट‍िंग की दुनिया में आ गए, इस पर पैरेंट्स का कैसा रिएक्शन था?
शुरू में तो अलग रिएक्शन था। क्योंकि आईआईटी में जाने के लिए अकेली मेरी ही मेहनत नहीं थी। पूरी फैमिली की मेहनत थी। और अफकॉर्स घर में सभी सिविल इंजीनियर हैं। मेरे पापा खुद एक सिविल इंजीनियर हैं, तो उनके अपने सपने थे कि हम सभी आगे चलकर सिविल इंजीनियरिंग की एक फर्म खोलेंगे। तो मेरे सपने सुनकर उनके सपने जरूर हिले। उस वक्त तो उन्होंने काफी स्ट्रॉन्ग रिएक्शन दिया कि इसे समझाओ, ये क्या कर रहा है, लेकिन फिर समय के साथ वे मान गए। दूसरा, आप अपनी भावना व्यक्त कर पैरंट्स को नहीं मना सकते। आपको उन्हें कुछ काम करके ही दिखाना होगा कि आप कितने पैशनेट हैं। मुझे भी थोड़ा समय लगा। लेकिन बाद में काम आता गया और उन्होंने मुझे जब स्क्रीन पर देखा तो वे मान गए।



आपने राजस्थान के अलवर जैसी जगह से आकर अपना मुकाम बनाया है। आप वैसे किस माहौल में पले-बढ़े?

मैं जिस जगह से आता हूं, जो मेरा गांव है खैरथल, वहां आसपास तो गांव जैसा ही माहौल है। वहां लोग खेती पर ही निर्भर हैं। दूसरा, वहां की अनाज मंडी बहुत बड़ी है। मैं जिस माहौल में बड़ा हुआ, वहां के लोगों का फिल्मी दुनिया से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था।

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आपको पहली बार फ्लाइट में बैठना याद है?
मैं पहली बार फ्लाइट में तब बैठा था, जब मेरा आईआईटी में सिलेक्शन हो गया था। आईआईटी बॉम्बे में हमारी काउंसलिंग होनी थी, तो पापा ने मेरी दिल्ली से मुंबई की पहली फ्लाइट बुक करवाई थी। वो था पहला एक्सपीरियंस जो मुझे आज भी अच्छे से याद है।

आज की पीढ़ी को आप क्या मैसेज देना चाहेंगे, जिनका दिल तो कहीं और है, लेकिन कर कुछ और रहे हैं?
मुझे लगता है कि अभी हम एक बहुत अच्छे समय में हैं, जिसमें कई अवसर हैं। पहले तो ऐसा नहीं था और हमें खुद ही मौके क्रिएट करने पड़ते थे। मतलब उसके लिए वहां तक पहुंचने के लिए ही एक अलग जर्नी होती थी। लेकिन आज के समय में आप कुछ भी कर सकते हैं। अपना स्टार्ट अप शुरू कर सकते हैं। अगर आपका आइडिया अच्छा है, आपका बिजनेस प्लान अच्छा है और वो किसी को देखने को मिले तो एक स्कोप है। अभी हम बहुत ही अच्छे समय में हैं, तो हमें जरूर जो भी हमारी दिली इच्छा है उसे एक बार फॉलो करके देख लेना चाहिए।

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आपने कई सीनियर एक्‍टर्स जैसे रघुबीर यादव, राम गोपाल बजाज के साथ काम किया है, तो उनके साथ काम करके कैसा लगा?
इन लोगों के साथ मुझे हमेशा बहुत सीखने को मिलता है। जिस तरह से वो किसी भी सीन को अप्रोच करते हैं। उन सबका तरीका मैं देखता हूं कि वो किस तरीके से इमोशन्स को टेबल पर लेकर आ रहे हैं। मुझे वो देखने में बहुत मजा आता है। मैं एंजॉय ज्यादा करता हूं जब किसी सीनियर को-एक्टर के साथ काम करता हूं।


क्‍या कभी-कभी आपको भी लगता है कि आप दूसरे एक्टर्स की तरह किसी एक्टिंग स्कूल से नहीं हैं, तो इसका असर आपके अभ‍िनय पर पड़ता है?
कभी-कभी ऐसे थॉट्स आते हैं। जब मैं किसी सीन में अटकता हूं तो खुद से पूछता हूं कि क्या मेरी ट्रेनिंग मिस होने की वजह से मैं इसे नहीं कर पा रहा हूं या क्या? लेकिन जब आप काम करते रहते हैं तो उस परेशानी से निकलने के रास्ते भी मिल जाते हैं और उस सवाल का जवाब अंदर से ही मिल जाता है।

फिल्म इंडस्ट्री में लोग आईआईटी से पढ़े लोगों को सीरियसली लेते हैं?
पहले तो बहुत सीरियसली ले रहे थे, लेकिन अब यह कहते हुए मजाक उड़ाते हैं कि अरे तुम भी इंजीनियर पहुंच गए। लेकिन यह एक मजाकिया तौर पर होता है।
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