पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में महिला मतदाताओं को सबसे अधिक अहमियत मिल रही है। बीजेपी और जेडीयू को तो महिला वोटरों पर पहले से ही सबसे अधिक भरोसा है, अब राष्ट्रीय जनता दल ( आरजेडी ) उनसे भी आगे निकलने की कोशिश कर रही है। आरजेडी के उम्मीदवारों की लिस्ट देखकर यह बात साफ हो जाती है। आरजेडी ने महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए एक बड़ा दांव खेला है। उसने अन्य दलों की तुलना में सबसे अधिक 24 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।
आरजेडी का यह कदम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पारंपरिक महिला वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति का हिस्सा है। जेडीयू महिलाओं को हमेशा से भरोसेमंद वोटर मानती आई है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव महिलाओं को सीधे आर्थिक लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं का वादा करके उनको अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है।
आरजेडी की 20 प्रतिशत उम्मीदवार महिलाएं बीजेपी और जेडीयू ने 10 प्रतिशत से कुछ अधिक महिलाओं को टिकट दिए हैं। इनके तीसरे पार्टनर लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने भी 10 प्रतिशत से अधिक महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने 10 फीसदी से भी कम महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा है। आरजेडी ने 20 प्रतिशत से कुछ कम महिलाओं को टिकट दिए हैं, लेकिन यह संख्या अन्य प्रमुख दलों की तुलना में काफी अधिक है।
एनडीए के प्रमुख घटक दल बीजेपी और जेडीयू की रणनीति के दृष्टिगत तेजस्वी यादव यह बात अच्छी तरह समझते हैं कि महिलाओं को अपने पाले में लाए बिना बात नहीं बनेगी। आरजेडी इस बार 143 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इनमें समाज के विभिन्न वर्गों को साधने की कोशिश की गई है। इन 143 सीटों में से 24 पर महिला उम्मीदवारों को टिकट दिए गए हैं। किसी भी अन्य पार्टी ने इतनी बड़ी संख्या में महिला उम्मीदवारों पर दांव नहीं खेला है। एनडीए गठबंधन में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने समान रूप से 13-13 महिला उम्मीदवारों को चुनावी मुकाबले के लिए चुना है।
सामाजिक समीकरण के मद्देनजर संतुलन की कोशिश
आरजेडी के प्रत्याशियों की लिस्ट में सामाजिक समीकरण भी महत्वपूर्ण है, जिसमें 52 उम्मीदवार यादव जाति से हैं, 18 मुस्लिम, 13 कुशवाहा और 2 कुर्मी हैं। उच्च जातियों से 16 उम्मीदवार हैं, जिनमें 7 राजपूत, 6 भूमिहार और 3 ब्राह्मण शामिल हैं। अनुसूचित जाति, जनजाति (एससी-एसटी) से 20 उम्मीदवार हैं, जिनमें से एक अनुसूचित जनजाति से है। कोइरी, कुर्मी, कुशवाहा के अलावा पिछड़ी एवं अत्यंत पिछड़ी जातियों के 21 उम्मीदवार हैं, जिनमें चंद्रवंशी (कहार), नोनिया, तेली, मल्लाह जैसी जातियों को अधिक प्रतिनिधित्व मिला है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महिला वोटरों को हमेशा महत्व देते रहे हैं। उन्होंने छात्राओं को साइकिल वितरण जैसी कई योजनाएं चलाईं। वे महिलाओं को भरोसेमंद वोटर मानते रहे हैं। हालांकि इस बार नीतीश कुमार ने महिला उम्मीदवारों को उतनी तवज्जो नहीं दी जितनी आशा की जा रही थी। बिहार में सत्तारूढ़ जेडीयू और बीजेपी इस बार 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं और दोनों ने ही 13-13 महिलाओं को टिकट दिए हैं। एनडीए की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) 29 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है और उसने 6 महिलाओं को टिकट दिए हैं।
नीतीश के जवाब में महिलाओं को एकमुश्त 30 हजार रुपये देश की राजनीति में महिलाओं का महत्व निरंतर बढ़ रहा है। नीतीश कुमार जब 2005 में पहली बार सत्ता में आए थे, तभी उन्होंने इसे भांप लिया था। इसलिए नीतीश सरकार ने शुरुआत से महिलाओं से जुड़ी योजनाओं को प्राथमिकता दी। बिहार में शराबबंदी को महिलाओं के उत्थान से जोड़ा गया। सरकारी नौकरियों में आरक्षण का वादा भी महिलाओं के कदमों को मजबूत करने के लिए किया गया। यही वजह है कि महिलाएं नीतीश के प्रति खास लगाव रखती हैं। इस बार बिहार के चुनाव से पहले नीतीश कुमार सरकार ने महिलाओं के खातों में 10-10 हजार रुपये ट्रांसफर करके फिर जता दिया कि वे महिलाओं के साथ खड़े हैं।
तेजस्वी यादव ने नीतीश के इस वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए कई दांव खेले हैं। 24 महिला कैंडिडेट को मैदान में उतारकर तेजस्वी ने यह बताने की कोशिश की है कि वह महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की सोच रखते हैं। वहीं, 'माई-बहिन' योजना के जरिए महिलाओं को सीधे आर्थिक लाभ देने का वादा किया है। तेजस्वी ने हर महिला को 2,500 रुपये देने का वादा किया है। इसके साथ ही वे नीतीश सरकार द्वारा महिलाओं के खातों में 10 हजार रुपये ट्रांसफर करने की योजना के मुकाबले हर महिला के खाते में पूरे साल का एकमुश्त 30 हजार रुपया एडवांस देने का वादा कर रहे हैं।
आरजेडी की महिला प्रत्याशी कांग्रेस से भी अधिक
विपक्षी महागठबंधन की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने 60 सीटों पर घोषित उम्मीदवारों में केवल पांच महिला उम्मीदवारों के नाम शामिल किए हैं। कांग्रेस ने 10 फीसदी से भी कम महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा है। आरजेडी ने 20 प्रतिशत से कुछ कम महिलाओं को टिकट दिए हैं, लेकिन यह संख्या अन्य प्रमुख दलों की तुलना में काफी अधिक है।
आरजेडी का यह कदम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पारंपरिक महिला वोट बैंक में सेंध लगाने की रणनीति का हिस्सा है। जेडीयू महिलाओं को हमेशा से भरोसेमंद वोटर मानती आई है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव महिलाओं को सीधे आर्थिक लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं का वादा करके उनको अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है।
आरजेडी की 20 प्रतिशत उम्मीदवार महिलाएं बीजेपी और जेडीयू ने 10 प्रतिशत से कुछ अधिक महिलाओं को टिकट दिए हैं। इनके तीसरे पार्टनर लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने भी 10 प्रतिशत से अधिक महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस ने 10 फीसदी से भी कम महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा है। आरजेडी ने 20 प्रतिशत से कुछ कम महिलाओं को टिकट दिए हैं, लेकिन यह संख्या अन्य प्रमुख दलों की तुलना में काफी अधिक है।
एनडीए के प्रमुख घटक दल बीजेपी और जेडीयू की रणनीति के दृष्टिगत तेजस्वी यादव यह बात अच्छी तरह समझते हैं कि महिलाओं को अपने पाले में लाए बिना बात नहीं बनेगी। आरजेडी इस बार 143 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इनमें समाज के विभिन्न वर्गों को साधने की कोशिश की गई है। इन 143 सीटों में से 24 पर महिला उम्मीदवारों को टिकट दिए गए हैं। किसी भी अन्य पार्टी ने इतनी बड़ी संख्या में महिला उम्मीदवारों पर दांव नहीं खेला है। एनडीए गठबंधन में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने समान रूप से 13-13 महिला उम्मीदवारों को चुनावी मुकाबले के लिए चुना है।
सामाजिक समीकरण के मद्देनजर संतुलन की कोशिश
आरजेडी के प्रत्याशियों की लिस्ट में सामाजिक समीकरण भी महत्वपूर्ण है, जिसमें 52 उम्मीदवार यादव जाति से हैं, 18 मुस्लिम, 13 कुशवाहा और 2 कुर्मी हैं। उच्च जातियों से 16 उम्मीदवार हैं, जिनमें 7 राजपूत, 6 भूमिहार और 3 ब्राह्मण शामिल हैं। अनुसूचित जाति, जनजाति (एससी-एसटी) से 20 उम्मीदवार हैं, जिनमें से एक अनुसूचित जनजाति से है। कोइरी, कुर्मी, कुशवाहा के अलावा पिछड़ी एवं अत्यंत पिछड़ी जातियों के 21 उम्मीदवार हैं, जिनमें चंद्रवंशी (कहार), नोनिया, तेली, मल्लाह जैसी जातियों को अधिक प्रतिनिधित्व मिला है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महिला वोटरों को हमेशा महत्व देते रहे हैं। उन्होंने छात्राओं को साइकिल वितरण जैसी कई योजनाएं चलाईं। वे महिलाओं को भरोसेमंद वोटर मानते रहे हैं। हालांकि इस बार नीतीश कुमार ने महिला उम्मीदवारों को उतनी तवज्जो नहीं दी जितनी आशा की जा रही थी। बिहार में सत्तारूढ़ जेडीयू और बीजेपी इस बार 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं और दोनों ने ही 13-13 महिलाओं को टिकट दिए हैं। एनडीए की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) 29 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है और उसने 6 महिलाओं को टिकट दिए हैं।
नीतीश के जवाब में महिलाओं को एकमुश्त 30 हजार रुपये देश की राजनीति में महिलाओं का महत्व निरंतर बढ़ रहा है। नीतीश कुमार जब 2005 में पहली बार सत्ता में आए थे, तभी उन्होंने इसे भांप लिया था। इसलिए नीतीश सरकार ने शुरुआत से महिलाओं से जुड़ी योजनाओं को प्राथमिकता दी। बिहार में शराबबंदी को महिलाओं के उत्थान से जोड़ा गया। सरकारी नौकरियों में आरक्षण का वादा भी महिलाओं के कदमों को मजबूत करने के लिए किया गया। यही वजह है कि महिलाएं नीतीश के प्रति खास लगाव रखती हैं। इस बार बिहार के चुनाव से पहले नीतीश कुमार सरकार ने महिलाओं के खातों में 10-10 हजार रुपये ट्रांसफर करके फिर जता दिया कि वे महिलाओं के साथ खड़े हैं।
तेजस्वी यादव ने नीतीश के इस वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए कई दांव खेले हैं। 24 महिला कैंडिडेट को मैदान में उतारकर तेजस्वी ने यह बताने की कोशिश की है कि वह महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की सोच रखते हैं। वहीं, 'माई-बहिन' योजना के जरिए महिलाओं को सीधे आर्थिक लाभ देने का वादा किया है। तेजस्वी ने हर महिला को 2,500 रुपये देने का वादा किया है। इसके साथ ही वे नीतीश सरकार द्वारा महिलाओं के खातों में 10 हजार रुपये ट्रांसफर करने की योजना के मुकाबले हर महिला के खाते में पूरे साल का एकमुश्त 30 हजार रुपया एडवांस देने का वादा कर रहे हैं।
आरजेडी की महिला प्रत्याशी कांग्रेस से भी अधिक
विपक्षी महागठबंधन की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने 60 सीटों पर घोषित उम्मीदवारों में केवल पांच महिला उम्मीदवारों के नाम शामिल किए हैं। कांग्रेस ने 10 फीसदी से भी कम महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा है। आरजेडी ने 20 प्रतिशत से कुछ कम महिलाओं को टिकट दिए हैं, लेकिन यह संख्या अन्य प्रमुख दलों की तुलना में काफी अधिक है।
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