इस्लामाबाद: पाकिस्तान अपनी खनिज संपदा के लिए अमेरिका कंपनी से समझौता किया है। पाक सेना प्रमुख असीम मुनीर और शहबाज शरीफ ने हाल ही में वाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप के साथ मुलाकात में उनको दुर्लभ खनिजों से भरा बॉक्स दिया। इसकी ना सिर्फ पाकिस्तान और अमेरिका बल्कि दुनियाभर में चर्चा है। कहा जा रहा है कि पाकिस्तान अल्पकालिक राजनीतिक वैधता और कर्ज मुक्ति के लिए अपनी रणनीतिक खनिज संपदा का व्यापार कर रहा है। पाकिस्तानी आर्मी ने अब खनिज संपदा को अपनी जेब भरने का जरिया बना लिया है।
न्यूज18 ने सूत्रों के हवाले से कहा है पाकिस्तान की ओर से अमेरिका को खनिज संपदा का लालच देने के पीछे खास रणनीति है। असीम मुनीर ने बाकायदा ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों के सामने खनिज के नमूने प्रदर्शित किए। हालांकि सूत्रों का कहना है कि 500 ट्रिलियन डॉलर का अमेरिका-पाकिस्तान दुर्लभ मृदा सौदा व्यावसायिक सफलता कम और वस्तु विनिमय जैसी कोशिश ज्यादा है। यानी पाक आर्मी सिर्फ अपना फायदा देख रही है।
पाकिस्तान से भी उठ रही आवाजेंपाकिस्तानी सांसदों ने यूएस स्ट्रैटेजिक मेटल्स (USSM) के साथ हुए समझौता ज्ञापन की गोपनीयता पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि सेना आर्थिक संप्रभुता का दुरुपयोग करते हुए 18वें संशोधन का उल्लंघन कर रही है, जो प्रांतों के लिए खनिज अधिकार सुरक्षित रखता है। दरअसल सेना की इंजीनियरिंग शाखा फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशन (FWO) बलूचिस्तान और गिलगित-बाल्टिस्तान में दुर्लभ मृदा खनन के प्राथमिक चैनल के रूप में उभरी है।
पाकिस्तान का खनिज निष्कर्षण क्षेत्र उग्रवाद प्रभावित बलूचिस्तान में आते हैं। हालांकि इस पर ना तो स्थानीय आबादी से सलाह ली गई है और ना ही उन्हें मुआवजे की बात कही गई है। बलूचिस्तान के गलियारों में एफडब्ल्यूओ निष्कर्षण, शोधन और निर्यात को नियंत्रित करता है। इससे मुनाफा स्थानीय समुदायों की बजाय सेना पर चला जाता है।
खनन क्षेत्र का सैन्यकरणपाकिस्तानी सेना ने खनन क्षेत्र का सैन्यीकरण कर दिया है और आंतरिक सुरक्षा के नाम पर विरोध को दबा दिया है। ऐसे में कहा जा रहा है कि पाकिस्तानी सेना के लिए प्राकृतिक संसाधन अस्तित्व की नई मुद्रा बनकर उभर रहे हैं। पाकिस्तान की सेना का अमेरिका के साथ आर्थिक सहयोग का एक पैटर्न रहा है, जहां उन्हें आर्थिक फायदा के साथ-साथ वॉशिंगटन से भी इनाम मिलता है।
न्यूज18 ने सूत्रों के हवाले से कहा है पाकिस्तान की ओर से अमेरिका को खनिज संपदा का लालच देने के पीछे खास रणनीति है। असीम मुनीर ने बाकायदा ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों के सामने खनिज के नमूने प्रदर्शित किए। हालांकि सूत्रों का कहना है कि 500 ट्रिलियन डॉलर का अमेरिका-पाकिस्तान दुर्लभ मृदा सौदा व्यावसायिक सफलता कम और वस्तु विनिमय जैसी कोशिश ज्यादा है। यानी पाक आर्मी सिर्फ अपना फायदा देख रही है।
पाकिस्तान से भी उठ रही आवाजेंपाकिस्तानी सांसदों ने यूएस स्ट्रैटेजिक मेटल्स (USSM) के साथ हुए समझौता ज्ञापन की गोपनीयता पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि सेना आर्थिक संप्रभुता का दुरुपयोग करते हुए 18वें संशोधन का उल्लंघन कर रही है, जो प्रांतों के लिए खनिज अधिकार सुरक्षित रखता है। दरअसल सेना की इंजीनियरिंग शाखा फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशन (FWO) बलूचिस्तान और गिलगित-बाल्टिस्तान में दुर्लभ मृदा खनन के प्राथमिक चैनल के रूप में उभरी है।
पाकिस्तान का खनिज निष्कर्षण क्षेत्र उग्रवाद प्रभावित बलूचिस्तान में आते हैं। हालांकि इस पर ना तो स्थानीय आबादी से सलाह ली गई है और ना ही उन्हें मुआवजे की बात कही गई है। बलूचिस्तान के गलियारों में एफडब्ल्यूओ निष्कर्षण, शोधन और निर्यात को नियंत्रित करता है। इससे मुनाफा स्थानीय समुदायों की बजाय सेना पर चला जाता है।
खनन क्षेत्र का सैन्यकरणपाकिस्तानी सेना ने खनन क्षेत्र का सैन्यीकरण कर दिया है और आंतरिक सुरक्षा के नाम पर विरोध को दबा दिया है। ऐसे में कहा जा रहा है कि पाकिस्तानी सेना के लिए प्राकृतिक संसाधन अस्तित्व की नई मुद्रा बनकर उभर रहे हैं। पाकिस्तान की सेना का अमेरिका के साथ आर्थिक सहयोग का एक पैटर्न रहा है, जहां उन्हें आर्थिक फायदा के साथ-साथ वॉशिंगटन से भी इनाम मिलता है।
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