नई दिल्ली। कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने फैसला सुनाया था कि राज्यपाल या राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर किसी बिल के बारे में कदम उठाना होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से विवाद हो गया था। राष्ट्रपति ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को रेफरेंस तक भेजा। अब सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को तमिलनाडु सरकार की याचिका खारिज करते हुए कहा कि अदालत की तरफ से राष्ट्रपति को निर्देश नहीं दिया जा सकता। तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि राज्यपाल ने मंत्रिपरिषद की सलाह न लेते हुए कलैगनार विश्वविद्यालय की स्थापना और राज्य के शारीरिक शिक्षा और खेल विश्वविद्यालय एक्ट में संशोधन के बिल राष्ट्रपति को असंवैधानिक तौर पर भेजे हैं।
तमिलनाडु सरकार की याचिका पर चीफ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने कहा कि वो राष्ट्रपति को फैसले से रोकने का आदेश नहीं दे सकती। बेंच ने कहा कि तमिलनाडु सरकार की दो रिट याचिकाओं पर सुनवाई स्थगित कर रहे हैं। ताकि ज्यादा से ज्यादा चार हफ्ते में स्पष्ट तस्वीर मिल जाए। तमिलनाडु सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में सीनियर वकील एएम सिंघवी और मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि तमाम बिल पर राज्यपाल धारा की जांच कर ये घोषित नहीं कर सकते कि वे केंद्रीय कानून के खिलाफ हैं और ऐसे में राष्ट्रपति को भेजना है। राज्य सरकार के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि अगर राज्यपाल को बिलों की जांच करनी होती, तो उनको राजभवन की जगह सुप्रीम कोर्ट में बैठना चाहिए था।
इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच से सॉलिसिटस जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 1950 में संविधान के लागू होने पर राज्यपाल पारित बिलों की अरुचि की जांच करते रहे हैं। ये नया नहीं है। तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट की बेंच के सामने आंकड़े दिए और कहा कि राज्यपालों ने उनके पास भेजे गए बिल के छोटे से प्रतिशत को ही राष्ट्रपति की राय के लिए भेजा है। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि 2015 से सभी राज्यों के राज्यपालों ने उनके पास भेजे गए 6942 में से 6481 बिलों को मंजूरी दी और 50 को संदेश के साथ दोबारा विधानसभा भेजा। 11 की मंजूरी राज्यपालों ने रोकी हुई है। जबकि, 381 बिलों को राष्ट्रपति के पास राज्यपालों ने भेजा है।
The post Supreme Court On Direction To President: तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी, कहा- हम राष्ट्रपति को निर्देश नहीं दे सकते; इससे पहले बिलों पर फैसला लेने के की समयसीमा तय करने पर विवाद हुआ था appeared first on News Room Post.
You may also like
बुर्का उतारो वरना एंट्री नहीं! मेरठ कॉलेज में मुस्लिम लड़कियों के साथ क्या हुआ, जानकर चौंक जाएंगे
'खलनायक 2' में नया मोड़, सुभाष घई ने नहीं थामी डायरेक्शन की कमान
शासकीय कार्यों में लापरवाही बरतने पर डीएम ने तहसील कर्मी को किया निलंबित
'बाहर की कहानी अलग है, हमारे बीच कुछ नहीं बदला है' – शुभमन गिल ने रोहित शर्मा के साथ विवाद की अफवाहों को नकारा
IAS इंटरव्यू में पूछा, कौन सा देश है जहा पर` 40 मिनट की ही रात होती है