दक्षिण भारत के केरल फ़िल्म उद्योग में काम करने वाली एक मेकअप आर्टिस्ट पूरे दिन की शूटिंग के बाद होटल के अपने कमरे में सो रही थीं.
आधी रात को उन्हें आभास हुआ कि कोई आदमी उनके बेड के नीचे से बाहर निकल रहा है.
53 साल की रेवती (बदला हुआ नाम) ने बताया, “मैं चिल्लाई और असिस्टेंट डायरेक्टर के कमरे की ओर भागी. मैं बहुत घबरा गई थी.”
रेवती कहती हैं कि वो आदमी फ़िल्म के प्रोडक्शन यूनिट से था. उन्होंने इसकी शिकायत प्रोडक्शन हाउस और पुलिस से की लेकिन उनके मुताबिक़ इसका कोई नतीजा नहीं निकला.
रेवती कहती हैं, “फ़िल्म के सेट पर पुरुषों को पोर्न देखते हुए और औरतों को तिरछी नज़र से घूरते हुए मैंने देखा है. टेक्नीशियनों के लिए कोई कैरवैन या बायो टॉयलेट नहीं होता है. फ़िल्म सेट अब भी पुरुषों के वर्चस्व वाली जगह होती है.”
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साल 2018 में रेवती और कई अन्य महिलाओं ने जस्टिस हेमा कमिटी के सामने अपने अनुभव साझा किए थे.
इसके एक साल पहले एक जानी-मानी अभिनेत्री के साथ यौन दुर्व्यवहार की घटना के बाद केरल सरकार ने तीन सदस्यों वाली जस्टिस हेमा कमिटी गठित की थी.
कमिटी ने उस इंडस्ट्री में महिलाओं के काम के भयानक हालात की जांच की और 2019 में अपनी रिपोर्ट सौंपी.
पाँच साल बाद इस रिपोर्ट को पिछले महीने सार्वजनिक किया गया. इसके निष्कर्षों को फ़िल्म उद्योग में एक मील के पत्थर के रूप में देखा जा रहा है.
इंडस्ट्री से जुड़ी महिलाओं ने कमिटी से बात करते हुए दशकों पुराने दुर्व्यवहार की उन घटनाओं को साझा किया जो उन्होंने झेला या देखा था.
कइयों के लिए यह एक सपोर्ट ग्रुप ‘वुमेन इन सिनेमा कलेक्टिव’ (डब्ल्यूसीसी) की कोशिशों का नतीजा था, जिसने उन्हें अपनी आवाज़ बुलंद करने के लिए प्रेरित किया.
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साल 2017 में यौन हिंसा के मामले में फूटे आक्रोश के बाद डब्ल्यूसीसी अस्तित्व में आया था.
इस घटना के बाद केरल फ़िल्म उद्योग से जुड़ी महिलाओं का एक समूह, दशकों पुराने यौन दुर्व्यवहार के मामलों की व्यापक जांच के लिए सरकार पर दबाव डालने के लिए एक साथ आया.
इस तरह से हेमा कमिटी की शुरुआत हुई.
जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी और इसने अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसके बाद 2024 में इसे जारी किया गया, डब्ल्यूसीसी महज एक सपोर्ट ग्रुप से बढ़कर केरल फ़िल्म उद्योग से जुड़ी महिलाओं के लिए अपनी अनकही कहानियों को साझा करने का एक मज़बूत प्लेटफ़ॉर्म बन गया.
रेवती ने बताया, “यह एक बहनापा है. डब्ल्यूसीसी के कारण, उद्योग के पुरुष थोड़ा सावधान हो गए हैं.”
डब्ल्यूसीसी में 60 आधिकारिक सदस्य हैं, जिसमें जानी-मानी फ़िल्म डायरेक्टर अंजली मेनन हैं जो डब्ल्यूसीसी की 17 संस्थापक सदस्याओं में भी शामिल हैं.
लेकिन इस ग्रुप को जॉइन करने की क़ीमत भी थी.
रेवती ने कहा, “जिन्होंने अपनी आवाज़ उठाई, उन्हें उद्योग में किनारे कर दिया गया.”
“लोग हमारे साथ काम करना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें लगता है कि हमसे समस्या खड़ी होगी. डब्ल्यूसीसी का हिस्सा रहने वाले हममें से अधिकांश लोगों को इस संगठन में शामिल होने के बाद कोई काम नहीं मिला.”
रेवती ने दावा किया कि राज्य में इस उद्योग की एकमात्र ट्रेड यूनियन फ़िल्म एम्पलॉयीज़ फ़ेडरेशन ऑफ़ केरल (एफ़ईएफ़केए) से उन्होंने शिकायत की थी लेकिन वहाँ से कभी कोई जवाब नहीं मिला.
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केरल एफ़ईएफ़केए के फ़िल्म एम्पलॉयी फ़ेडरेशन के 16 सालों तक महासचिव रहने वाले जाने-माने फ़िल्म निर्माता बी उन्नीकृष्णन का कहना है, “फ़ेडरेशन के पास इस बात से स्पष्ट रिकॉर्ड हैं कि 16 सालों में उन्हें कितनी शिकायतें मिलीं और उनमें से कितनी शिकायतों का निवारण किस तरह से किया गया. इसलिए आप ये नहीं कह सकते कि शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया गया.”
उन्होंने कहा, “अगर किसी एक सदस्य ने विशेषकर कार्यस्थल से संबंधित कोई शिकायत की, तो पहले यूनियन ने इसे हल करने की कोशिश की. अगर वे इसे हल नहीं कर सकते तो इसे फ़ेडरेशन में उठाएंगे.”
उन्होंने कहा, “सच कहूं, तो इस रिपोर्ट में कुछ भी ऐसा नहीं था, जिसके बारे में जानकारी न हो.”
लेकिन रेवती के लिए चुनौतियां बहुत थीं. खर्च चलाने के लिए उन्हें अपने घर को गिरवी रखना पड़ा.
मेनन ने कहा, “कुछ ने सीधे आकर हमसे कहा कि वो डब्ल्यूसीसी का हिस्सा नहीं रह सकतीं, लेकिन वो बाहर रहकर समर्थन करना जारी रखेंगी.”
इस तरह से क़रीब 100 सदस्यों वाला एक सोशल मीडिया ग्रुप ‘फ़्रेंड्स ऑफ़ डब्ल्यूसीसी’ वजूद में आया. यह ग्रुप पुरुष और महिलाओं दोनों के लिए लिए खुला है. यहाँ सदस्य अपनी शिकायतों, काम से जुड़ी जानकारियों और अवसरों के बारे में नेटवर्क को साझा कर सकते हैं.
डब्ल्यूसीसी उद्योग में एक सिनेमा नीति बनाने की मांग करती रही है. यह शोध कराती है, रिपोर्टों को प्रकाशित करती है और आंकड़ों की समीक्षा के लिए गोष्ठियां आयोजित करती है.
हेमा कमिटी की रिपोर्ट के जारी होने के साथ ही उनके काम ने फ़िल्म उद्योग में काम करने वाली अन्य महिलाओं को आवाज़ दी है.
कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में फ़िल्म उद्योग में काम करने वाली महिलाओं ने भी इसी तरह के कलेक्टिव बनाने की शुरुआत की है ताकि वे शोषण वाले रिवाजों और कार्यस्थल पर दुर्व्यवहार को लेकर बात कर सकें.
इसका असर दुनिया की सबसे बड़ी फ़िल्म इंडस्ट्री- बॉलीवुड में भी देखने को मिले हैं.
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साल 2017 के बाद बॉलीवुड में भी #MeToo आंदोलन चला और कई महिलाओं ने इस उद्योग के कुछ जाने-माने नामों के ख़िलाफ़ यौन शोषण के आरोप लगाए.
तनुश्री दत्ता, जो कि उस समय क़रीब 30 साल की थीं, अपनी आवाज़ उठाने वाली पहली अभिनेत्री थीं.
आरोपों के बाद उन पर “ग़ैर-पेशेवर” होने का ठप्पा लगाया गया और “पागल” क़रार दिया गया. अब वो आध्यात्म की ओर मुड़ चुकी हैं.
तनुश्री दत्ता कहती हैं, “कुछ सालों तक यह मुश्किल बना रहा. शुरू में मैं नहीं समझ सकती थी कि ये क्या हो रहा है. बस इतना समझ में आया कि मेरे सारे प्रोजेक्ट मुझसे से छीन लिए गए.”
छह साल बीत चुके हैं और बीबीसी ने कई महिलाओं से इस बारे में बात की और उन सभी का कहना है कि कोई ख़ास बदलाव नहीं आया है.
इस इंडस्ट्री पर लंबे समय से कास्टिंग काउच और महिलाओं के यौन उत्पीड़न के आरोप लगते रहे हैं. कास्टिंग काउच में पुरुष, अभिनेत्री को कोई भूमिका देने के बादले यौन संबंधों की मांग करता है
साल 2018 में अपना #MeToo अनुभव साझा करने वाली लेखिका, निर्माता और अभिनेत्री विंता नंदा ने कहा, “बंद दरवाज़े के पीछे जो कुछ हो रहा है, वो अब और स्याह हो चुका है.”
वो बॉलीवुड को और सुरक्षित बनाने के लिए आंदोलन चला रही हैं.
वो कहती हैं, “जिन्होंने आवाज़ उठाई, उन्हें चुप करा दिया गया जबकि दोषियों ने महिलाओं का उत्पीड़न करने के नए-नए तरीक़े खोजना जारी रखा है.”
नंदा कहती हैं कि आरोपों के साथ जब वो सामने आईं तो कई बड़े प्रोजेक्ट उनके हाथ से चले गए.
जेंडर सेंसिटिविटी और यौन उत्पीड़न की रोकथाम की ट्रेनर अनुशा ख़ान ने कहा, “अगर आप नाम और जगह बदल दें तो हेमा कमिटी की रिपोर्ट का कथ्य बॉलीवुड पर भी लागू होता है.”
2018 के आरोपों के बाद फ़िल्म एसोसिएशनों ने प्रिवेंशन ऑफ़ सेक्शुअल हैरेसमेंट ऐट वर्कप्लेस एक्ट ऑफ़ इंडिया (पीओएसएच) को मानने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दुहराया.
इसकी वजह से अनिवार्य लैंगिक संवेदनशीलता की ट्रेनिंग का बदलाव हुआ और फ़िल्म के सेट पर इंटिमेसी कोऑर्डिनेटर रखे जाने की शुरुआत हुई.
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अनुशा ख़ान के अनुसार, एक तरफ़ इंडस्ट्री में जेंडर सेंसिटिविटी ट्रेनिंग को लेकर समझदारी बढ़ रही है, लेकिन इसका असर होना बाक़ी है और सत्ता का ढांचा वैसा ही बना हुआ है.
हम लोग 29 साल की काव्या (बदला हुआ नाम) से मिले जो 2016 में मुंबई फ़िल्म निर्माता बनने आई थीं, लेकिन पहले ही प्रोजेक्ट में उन्हें एक स्थापित अभिनेता के हाथों दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा.
उन्होंने कहा, “इस घटना से मुझे बहुत धक्का लगा और मैं अपनी ज़िंदगी को लेकर डर गई थी.”
केरल में सिनेमा कलेक्टिव में महिलाओं की तरह ही, बॉलीवुड में भी महिलाओं को अपने अनुभव और चिंताओं को साझा करने का प्लेटफ़ॉर्म है.
उद्योग में कुछ चंद महिला सिनेमैटोग्राफ़रों में से एक जूही शर्मा ने कोविड महामारी के दौरान बितचित्र कलेक्टिव की सह स्थापना की. वो इंडियन वुमेन इन सिनेमौटोग्राफ़ी कलेक्टिव की सदस्य हैं.
उन्होंने कहा, “हमारी उम्मीद है कि महिलाओं को एकजुट होना होगा और सुरक्षित जगह बनानी होगी, जहाँ वे सलाह और समर्थन के लिए वरिष्ठ सदस्यों से मिल सकें.”
बितचित्र कलेक्टिव के पूरी दुनिया में 300 सदस्य हैं और यह महिलाओं को अनुदान, सलाह के साथ सुरक्षा मुहैया कराने के लिए एक सपोर्ट सिस्टम की तरह काम करता है.
हेमा कमिटी रिपोर्ट के बाद उठे सवालों ने उनमें उम्मीद जगाई है.
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एक अभिनेत्री और डब्ल्यूसीसी सदस्य अर्चना पद्मिनी कहती हैं, “कुछ सरकारी रेग्युलेटरी सिस्टम होना चाहिए या निगरानी रखने के लिए कोई सिस्टम होना चाहिए.”
“मैं अभी भी सोचती हूं कि अपराधी आस पास ही रहेंगे. वे और ताक़त के साथ वापस आएंगे. यह एक दुखद सच्चाई है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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