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मालेगांव ब्लास्ट केस: 'भगवा आतंकवाद' का ज़िक्र कब और कैसे शुरू हुआ?

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Reuters सितंबर 2008 को मालेगांव के भीकू चौक के पास विस्फोट हुआ था

मालेगांव बम ब्लास्ट मामले में 31 जुलाई 2025 को सुबह 11.15 बजे फ़ैसला सुनाए जाने के एक घंटे के भीतर, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर एक लाइन की पोस्ट डाली.

इसमें उन्होंने लिखा, "आतंकवाद भगवा न कभी था, ना है, ना कभी रहेगा!"

इससे एक दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में बहस के दौरान कहा, "हिंदू आतंकवाद का विचार किसने दिया? मैं दुनिया के सामने गर्व से कहता हूं कि हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकते."

उनके इस बयान पर चर्चा अभी चल ही रही थी कि अगले दिन मालेगांव ब्लास्ट मामले में कोर्ट का फ़ैसला आ गया. इसके बाद 'भगवा आतंकवाद' या 'हिंदू आतंकवाद' पर फिर से चर्चा शुरू हो गई.

इस शब्द का इस्तेमाल पहली बार मालेगांव बम ब्लास्ट की जांच शुरू होने के बाद हुआ था. उस वक़्त यूपीए सरकार सत्ता में थी और महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की सरकार थी. पिछले लगभग डेढ़ दशक में इस शब्द का भारतीय राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा है.

बीजेपी हिंदुत्व को अपनी विचारधारा के केंद्र में रखती है. पार्टी बार-बार आरोप लगाती रही है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने जानबूझकर यह शब्द गढ़ा और अपनी 'तुष्टिकरण की राजनीति' के लिए इसका इस्तेमाल किया.

उस वक़्त से अब तक इससे जुड़े आरोप-प्रत्यारोप लगातार चुनाव प्रचार का हिस्सा बने रहे हैं.

कहाँ से हुई शुरुआत image Getty Images 2008 में मालेगांव बम विस्फोट की घटना के बाद सैंपल इकट्ठा करते हुए फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स

साल 2008 में हुए मालेगांव ब्लास्ट से पहले 'भगवा आतंकवाद' शब्द का इस्तेमाल नहीं हुआ था.

हेमंत करकरे के नेतृत्व में महाराष्ट्र एटीएस ने मालेगांव बम ब्लास्ट की जांच शुरू की थी. एटीएस की शक की सूई कुछ हिंदुत्ववादी संगठनों पर गई थी.

इसके बाद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य लोगों को गिरफ़्तार किया गया. यह पहली बार था जब बम विस्फोट के किसी मामले में हिंदुत्ववादी संगठन से जुड़े किसी कार्यकर्ता को गिरफ़्तार किया गया.

उस वक़्त केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने सार्वजनिक तौर पर 'भगवा आतंकवाद' शब्द का इस्तेमाल किया.

साल 2010 में दिल्ली में सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों और पुलिस निदेशकों (डीजीपी और आईजीपी) के एक सम्मेलन में उन्होंने कहा था, "भारत में युवाओं को कट्टरपंथी बनाने की कोशिशें बंद नहीं हुई हैं. हाल में 'भगवा आतंकवाद' की एक घटना सामने आई है, जिसके तार पहले के कई बम विस्फोटों से जोड़े गए हैं. मैं आपको सलाह दूंगा कि आप सतर्क रहें. हमें केंद्र और राज्य स्तर पर अपनी आतंक रोधी क्षमताओं को लगातार बढ़ाना चाहिए."

उनकी इस टिप्पणी पर काफ़ी विवाद हुआ. हालांकि, बाद में कांग्रेस ने इस बयान से यह कहकर दूरी बना ली कि यह चिदंबरम की निजी राय है. फिर भी इस पर उनकी आलोचना थमी नहीं.

उसी साल विकीलीक्स ने दावा किया कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भारत में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत टिमोथी रोमर से कहा था कि भारत को सबसे बड़ा ख़तरा 'इस्लामिक आतंकवाद' से नहीं बल्कि तेज़ी से बढ़ते कट्टरपंथी हिंदुत्ववादी संगठनों से है.

विकीलीक्स एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है. इस संगठन ने कई गोपनीय दस्तावेज़ों, ईमेलों और सरकारी रिकॉर्ड्स को सार्वजनिक किया था. इसकी स्थापना 2006 में जूलियन असांज ने की थी.

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सुशील कुमार शिंदे और दिग्विजय सिंह के बयान image Getty Images सुशील कुमार शिंदे और दिग्विजय सिंह (फ़ाइल फ़ोटो)

पी चिदंबरम के बाद केंद्रीय गृह मंत्री बने सुशील कुमार शिंदे ने एक सार्वजनिक भाषण में 'भगवा आतंकवाद' शब्द का इस्तेमाल किया था.

जनवरी 2013 में कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनावों की तैयारी के लिए राजस्थान के जयपुर में एक चिंतन शिविर आयोजित किया था. वहां कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए शिंदे ने 'भगवा आतंकवाद' का ज़िक्र किया था.

अपनी आत्मकथा फ़ाइव डिकेड्स इन पॉलिटिक्स में शिंदे ने इसका विस्तार से उल्लेख किया है.

उन्होंने लिखाकि मंत्रालय के गोपनीय दस्तावेज़ों की समीक्षा के दौरान उन्हें 'भगवा आतंकवाद' का ज़िक्र मिला, लेकिन यह एक ऐसा मुद्दा था जिससे बड़ा विवाद हो सकता था क्योंकि इसमें बीजेपी और आरएसएस का नाम शामिल था. इसलिए सार्वजनिक तौर पर आरोप लगाने से पहले उन्होंने इसकी सत्यता की जांच का ध्यान रखा.

शिंदे ने यह भी कहा कि उन्होंने जानबूझकर 'हिंदू आतंकवाद' के बजाय 'भगवा आतंकवाद' शब्द का इस्तेमाल किया था.

अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा, "अगर कोई उस वक़्त मीडिया को दिए मेरे बयान देखे तो उसे पता चलेगा कि मैंने ख़ास तौर पर 'भगवा आतंकवाद' शब्द का इस्तेमाल किया. मुझे याद है कि मीडिया में किसी ने पूछा था कि यह 'हिंदू आतंकवाद' है या 'भगवा आतंकवाद'. मैंने जवाब में कहा था कि मैं जिसकी बात कर रहा हूं वो 'भगवा आतंकवाद' है."

हालांकि, बीजेपी उस वक़्त भी और अब भी इस शब्द का हवाला देते हुए कांग्रेस की आलोचना करती है.

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी बार-बार 'भगवा आतंकवाद' शब्द का इस्तेमाल किया.

उन्होंने दावा किया था कि 26/11 से ठीक पहले उन्होंने हेमंत करकरे से बात की थी, जिन्होंने कहा था कि मालेगांव जांच के कारण उन्हें हिंदुत्व समूहों से धमकियां मिली थीं.

उनकी यह टिप्पणी विवादास्पद मानी गई.

2019 के चुनावों में बीजेपी ने भोपाल से दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ मालेगांव विस्फोट मामले की मुख्य अभियुक्त साध्वी प्रज्ञा को उम्मीदवार बनाया.

चुनाव प्रचार के दौरान 'भगवा आतंकवाद' का मुद्दा एक बार फिर उठा, जब साध्वी प्रज्ञा ने दिग्विजय सिंह पर 'हिंदू आतंकवाद' शब्द गढ़ने का आरोप लगाया.

इस पर दिग्विजय सिंह ने जवाब दिया, "मैंने ऐसा कभी नहीं कहा. मुझे कोई एक क्लिप दिखाइए जिसमें मैंने हिंदुओं को आतंकवादी कहा हो. मैं खुद एक हिंदू हूं. मैं खुद को आतंकवादी क्यों कहूंगा?"

2022 में बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने आरोप लगाया था कि शरद पवार 'हिंदू आतंकवाद' शब्द का इस्तेमाल करने वाले पहले व्यक्ति थे और चिदंबरम व शिंदे ने उनका अनुसरण किया.

अलीबाग में पार्टी की एक रैली के दौरान पवार ने इस तरह के अतिवाद पर चिंता जताई थी.

फडणवीस की टिप्पणी से एक और राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया था.

व्यापक बहस image Getty Images मालेगांव विस्फोट मामले में प्रज्ञा सिंह ठाकुर बरी

जब मालेगांव मामले की जांच चल रही थी, तब विस्फोट के अन्य मामलों में भी हिंदुत्व संगठनों से जुड़े नाम सामने आए. मालेगांव के अभियुक्तों- साध्वी प्रज्ञा और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित-का नाम अन्य हिंसक घटनाओं में भी अभियुक्त के तौर पर सामने आया.

अलग-अलग राज्यों में दर्ज इन मामलों की जांच बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने संयुक्त रूप से की. कुछ अभियुक्तों को अंततः बरी कर दिया गया.

2007 में भारत-पाकिस्तान समझौता एक्सप्रेस में हुए विस्फोट में 68 लोगों की मौत हुई थी. इस मामले में स्वामी असीमानंद और अन्य को गिरफ़्तार किया गया था. 2019 में अदालत ने असीमानंद सहित चारों अभियुक्तों को बरी कर दिया. सरकार ने इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील न करने का निर्णय लिया, जिसकी आलोचना भी हुई.

2007 के अजमेर दरगाह विस्फोट मामले में भी असीमानंद को अभियुक्त बनाया गया था. इस विस्फोट में तीन लोगों की मौत हुई थी. 2017 में आए फैसले में असीमानंद को बरी कर दिया गया, जबकि सुनील जोशी, भावेश पटेल और देवेंद्र गुप्ता को दोषी ठहराया गया. सुनील जोशी की जांच के दौरान हत्या कर दी गई थी.

2007 में हैदराबाद की मक्का मस्जिद में हुए विस्फोट में 18 लोगों की मौत हुई थी. इस मामले में असीमानंद और 11 अन्य अभियुक्त बनाए गए थे. शुरुआत में इसकी जांच सीबीआई ने की थी, जिसे बाद में एनआईए को सौंप दिया गया.

2018 में अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया. यहां तक कि सीबीआई की हिरासत में दिए गए असीमानंद के कबूलनामे को भी अदालत ने ख़ारिज कर दिया.

इन घटनाओं में पहली बार हिंदुत्ववादी संगठनों से जुड़े लोगों पर संगठित हिंसा के आरोप लगे. इसकी शुरुआत 2008 में महाराष्ट्र एटीएस की मालेगांव जांच के दौरान हुई थी. इसी के बाद 'भगवा आतंकवाद' शब्द सामने आया और देशभर में राजनीतिक विवाद शुरू हुआ.

राजनीतिक घमासान में छूट गए अहम सवाल image Getty Images/BBC

मालेगांव फ़ैसले के बाद 'भगवा आतंकवाद' का मुद्दा एक बार फिर उठ खड़ा हुआ.

देवेंद्र फडणवीस ने मीडिया से कहा कि कांग्रेस को इस नैरेटिव को बढ़ावा देने के लिए माफ़ी मांगनी चाहिए.

वहीं, कांग्रेस के महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने कहा, "आतंकवाद का कोई धर्म, जाति या रंग नहीं होता. लेकिन कुछ पार्टियाँ इसे एक रंग देने की कोशिश करती हैं."

कोर्ट ने भी फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि हिंसक कृत्यों को धर्म से नहीं जोड़ा जा सकता.

पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राजू पारुलेकर पूछते हैं, "लिंचिंग की घटनाओं का क्या हुआ, क्या वे नहीं हुईं? क्या मालेगांव धमाकों में लोग नहीं मरे? कौन ज़िम्मेदार था? इन सवालों का जवाब कौन देगा?"

पारुलेकर कहते हैं, "देश में बहुसंख्यक आतंक का एक रूप उभर रहा है, जिसकी आड़ में अल्पसंख्यकों और आदिवासियों को दबाया जा रहा है."

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक प्रशांत दीक्षित का मानना है कि इस तरह की शब्दावली और उससे जुड़ी राजनीति, भारत में दो दृष्टिकोणों के बीच लंबे समय से चले आ रहे वैचारिक संघर्ष से उत्पन्न हुई है.

उनका कहना है, "आज़ादी से पहले भी आप इस विभाजन को देख सकते हैं. कांग्रेस ने भारत को यूरोपीय उदारवादी नज़रिए से देखा, जबकि आरएसएस और हिंदुत्ववादी संगठनों ने इसे भारतीय परंपरा में निहित सांस्कृतिक और ऐतिहासिक नज़रिए से देखा."

"मालेगांव जांच की शुरुआत से ही कांग्रेस को एक राजनीतिक अवसर का आभास हो गया था. गुजरात दंगों और मोदी के उदय के बाद भी वह ऐसी आलोचना करती रही. आधी-अधूरी जांचें ऐसे राजनीतिक खेल को बढ़ावा देती हैं. इसी वैचारिक टकराव से 'भगवा आतंक' शब्द का जन्म हुआ. बाद में, एके एंटनी ने स्वीकार किया कि इस शब्द का इस्तेमाल करने से कांग्रेस को राजनीतिक नुकसान हुआ."

प्रशांत दीक्षित कहते हैं कि इस पूरे राजनीतिक घमासान में सबसे अहम सवाल का जवाब आज तक नहीं मिला- वह यह कि मालेगांव में धमाके आख़िर किए किसने थे.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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