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आधुनिक हिंदी साहित्य के स्तंभ 'भीष्म साहनी', 'तमस' में दिखा भारत-पाकिस्तान बंटवारे का दर्द

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New Delhi, 10 जुलाई . हिंदी साहित्य के प्रमुख स्तंभों की बात होती है तो भीष्म साहनी का जिक्र होना लाजिमी है. वे आधुनिक हिंदी साहित्य के एक प्रमुख स्तंभ थे, जिनकी रचनाएं सामाजिक, मानवीय मूल्यों और भारत-पाकिस्तान विभाजन की त्रासदी को गहराई से बयां करती हैं. साहनी की लेखनी में मार्क्सवादी चिंतन और मानवतावादी दृष्टिकोण का संगम दिखाई देता है, जो उनकी कहानियों और उपन्यासों को कालजयी बनाता है.

भीष्म साहनी का सबसे मशहूर उपन्यास ‘तमस’ विभाजन की त्रासदी को दर्शाता है, जिस पर 1986 में एक टीवी सीरीज भी बनी. साहनी एक लेखक होने के साथ-साथ एक कुशल नाटककार, अनुवादक, संपादक और अभिनेता भी थे. उनकी रचनाओं की वजह से उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म भूषण और अन्य कई सम्मानों से भी नवाजा गया.

8 अगस्त 1915 को रावलपिंडी (पाकिस्तान) में जन्मे भीष्म साहनी का जन्म एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था. उनके पिता, हरबंस लाल साहनी, एक समाजसेवी थे. उन्होंने 1937 में लाहौर के गवर्नमेंट कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. किया और 1958 में पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से पीएचडी की.

भारत-पाकिस्तान विभाजन से पहले साहनी ने व्यापार किया. विभाजन के बाद वे भारत आए और यहां उन्होंने पत्रकारिता से अपने करियर की शुरुआत की. इस दौरान वे भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) से जुड़े और अभिनय में भी योगदान दिया. उन्होंने फिल्म ‘मोहन जोशी हाजिर हो’ में अभिनय भी किया. उन्होंने टॉलस्टॉय, ऑस्ट्रोवस्की जैसे रूसी लेखकों की लगभग दो दर्जन किताबों का हिंदी में अनुवाद किया, जिसमें टॉलस्टॉय का उपन्यास ‘पुनरुत्थान’ शामिल है.

साहनी ने 1965 से 1967 तक हिंदी पत्रिका नई कहानियां का संपादन किया. उन्होंने ‘तमस’ (1974), ‘बसंती’, ‘झरोखे’ और ‘कड़ियां’ जैसे उपन्यास भी लिखे. विभाजन की त्रासदी पर आधारित ‘तमस’ (1974) के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इसके अलावा, उन्होंने सामाजिक बंधनों और नारी जीवन की चुनौतियों को दर्शाते उपन्यास ‘बसंती’ से भी अपनी लेखनी की छाप छोड़ी. उन्होंने ‘हानूश’, ‘माधवी’, ‘कबीरा खड़ा बाजार में’, ‘मुआवजे’ और ‘आलमगीर’ जैसे नाटक भी लिखे.

भीष्म साहनी ने अपने भाई और हिंदी सिनेमा के मशहूर एक्टर बलराज साहनी की आत्मकथा ‘बलराज माय ब्रदर’ भी लिखी. अपनी रचनाओं के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म भूषण और अन्य कई सम्मानों से नवाजा गया. उनका निधन 11 जुलाई 2003 को दिल्ली में हुआ. उनकी रचनाएं आज भी हिंदी साहित्य में एक अमूल्य धरोहर के रूप में जीवित हैं.

एफएम/केआर

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