New Delhi, 16 अगस्त . भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में 17 अगस्त 1909 का दिन एक अमर गाथा के रूप में दर्ज है, जब मात्र 25 वर्षीय क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा ने सर्वोच्च बलिदान दिया. यह वह दौर था जब हिंदुस्तान की धरती पर स्वतंत्रता की चिंगारी धधक रही थी और शूरवीर क्रांतिकारी अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने का प्रण ले चुके थे. उसी दौर में, लंदन में ब्रिटिश अधिकारी कर्जन वायली की हत्या कर ढींगरा ने साम्राज्यवादी ताकतों को सीधी चुनौती दी. मदन लाल ढींगरा एक क्रांतिकारी थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के दमन के खिलाफ क्रांति की ज्वाला को और तेज किया. उन्होंने भारतीय युवाओं में नया जोश भर दिया और यह संदेश दिया कि भारत की धरती वीरों से खाली नहीं है.
मदन लाल ढींगरा का जन्म 18 सितंबर 1883 को पंजाब के अमृतसर में एक संपन्न परिवार में हुआ. उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश लिया. विशव बिंधू की ‘द लाइफ एंड टाइम ऑफ मदन लाल ढींगरा’ किताब में जिक्र है कि इंडिया हाउस में उनकी मुलाकात समान विचारधारा वाले साथियों से हुई. यह भारतीय क्रांतिकारियों का केंद्र था, जो भारत की स्वतंत्रता के लिए आकांक्षी और प्रचारक थे और जल्द ही उन्होंने अपनी मातृभूमि को आजाद कराने की योजनाएं बनानी शुरू कर दीं.
लंदन में ढींगरा राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा के संपर्क में आए. वहां के सभी देशभक्त खुदीराम बोस, कन्हाई लाल दत्त, सत्येंद्र पाल और काशीराम जैसे क्रांतिकारियों को मृत्युदंड दिए जाने से क्रोधित थे. देश गुलाम था, और आजादी पाने के लिए उन्होंने लौ जलाने की दिशा में विशेष भूमिका अदा की. लाला लाजपत राय का भाषण सुनकर 22 वर्षीय युवक मदनलाल का खून खौल उठा. अंग्रेजों की गुलामी से स्वतंत्र होने के लिए वे सर्वस्व बलिदान को तैयार थे.
मदन लाल ढींगरा अगर चाहते तो विलासिता का जीवन जी सकते थे, लेकिन उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए शहीद होना चुना.
ढींगरा ने इंडिया हाउस, लंदन में कर्नल सर विलियम हट कर्जन वायली की गोली मारकर हत्या कर दी थी. वायली एक सेवानिवृत्त ब्रिटिश भारतीय सेना और प्रशासनिक अधिकारी था. ढींगरा भारतीयों पर किए जा रहे अत्याचारों के लिए कर्जन वायली को दोषी मानते थे. इंडिया हाउस के संस्थापक श्यामजी कृष्ण वर्मा की नजरों में उन्होंने ऐसा काम किया, जो साम्राज्यवाद के शिकार अन्य देशों के लिए भी प्रेरणा से भरा था.
उसके बाद, उनसे अंग्रेज इतना डर गए कि सिर्फ 46 दिनों के भीतर ही मुकदमा चलाकर फांसी की सजा सुनाते हुए उन्हें फांसी दे दी. मदनलाल हंसते हुए फांसी के फंदे पर चढ़ गए और कह गए कि नाम उन्हीं का देश अमर होता है जो देश के लिए जीते और मरते हैं. उन्हें 1 जुलाई 1909 को वायली की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. इसके बाद, 17 अगस्त 1909 को पेंटनविले जेल में उन्हें फांसी दे दी गई. इसे ब्रिटिश न्यायपालिका के इतिहास का सबसे छोटा मुकदमा माना गया.
भारतीय संस्कृति विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी से यह पता चलता है कि मुकदमे में मदन लाल ढींगरा ने कहा था कि उन्हें कोई पछतावा नहीं है. ढींगरा ने देशभक्ति के आधार पर खुद को सही ठहराया. उन्होंने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए अपने प्राणों की आहुति देना उनके लिए सम्मान की बात है और उनके कार्यों के लिए कोई और जिम्मेदार नहीं है. उनका एकमात्र इरादा वायली को मारना था.
संस्कृति विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, मदन लाल ढींगरा की फांसी के दिन जेल के बाहर कई भारतीय क्रांतिकारी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एकत्रित हुए. यह पूरा प्रकरण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया गया. मदनलाल ढींगरा की देशभक्ति के इस उदाहरण ने शाही शासकों पर गहरा प्रभाव डाला और भारतीय क्रांतिकारियों को स्वतंत्रता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया.
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डीसीएच/एएस
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