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साहित्य से संघर्ष तक ऐसा रहा महाश्वेता देवी का जीवन, आदिवासियों के हक के लिए उठाई थी आवाज

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New Delhi, 27 जुलाई . महाश्वेता देवी सिर्फ एक लेखिका नहीं, बल्कि ऐसी शख्सियत थीं, जिन्होंने अपने कलम और कार्य दोनों से समाज के हाशिए पर जी रहे लोगों को आवाज दी. उनकी रचनाओं और सामाजिक कार्यों ने भारतीय साहित्य और समाज सुधार के क्षेत्र में अहम योगदान दिया.

महाश्वेता देवी का जन्म 14 जनवरी 1926 को ढाका (बांग्लादेश) में हुआ था. उनके पिता मनीष चंद्र घटक एक मशहूर कवि और उपन्यासकार थे, जबकि उनकी मां धरित्री देवी, एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं. बताया जाता है कि उनकी स्कूली शिक्षा ढाका में हुई. भारत विभाजन के समय किशोरावस्था में ही उनका परिवार पश्चिम बंगाल में आकर बस गया. इसके बाद उन्होंने कोलकाता के विश्वभारती विश्वविद्यालय (शांतिनिकेतन) और कलकत्ता विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की.

महाश्वेता ने कम उम्र में ही लेखन शुरू कर दिया था. उनकी पहली गद्य कृति ‘झांसी की रानी’ (1956) थी, जिसे उन्होंने सागर, जबलपुर, पुणे, इंदौर, ललितपुर, झांसी, ग्वालियर और कालपी के ऐतिहासिक स्थानों की यात्रा करते हुए लिखा था. इस रचना में उन्होंने 1857-58 की क्रांति की घटनाओं को जीवंत किया और इसमें रानी लक्ष्मीबाई के साथ-साथ अन्य क्रांतिकारियों के जीवन और चरित्र के बारे में समझने का मौका मिलता है. उन्होंने अपनी इस रचना में अंग्रेज अफसरों के बारे में भी लिखा.

महाश्वेता शुरू में कविताएं लिखती थीं, लेकिन बाद में कहानी और उपन्यास उनकी मूल विधा बन गए. उनका पहला उपन्यास ‘नाती’ 1957 में प्रकाशित हुआ. उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘मातृछवि’, ‘अग्निगर्भ’, ‘जंगल के दावेदार’, ‘हजार चौरासी की मां’, और ‘माहेश्वर’ शामिल हैं. पिछले चार दशकों में उनके लगभग 20 लघुकथा संग्रह और करीब 100 उपन्यास प्रकाशित हुए, जो अधिकतर बंगाली भाषा में थे.

महाश्वेता देवी की रचनाओं पर आधारित फिल्में जैसे ‘रुदाली’ और ‘हजार चौरासी की मां’ ने उनकी साहित्यिक पहुंच को और विस्तार दिया. अपनी लेखनी के साथ-साथ महाश्वेता देवी ने आदिवासी और दलित समुदायों के अधिकारों के लिए भी काम किया. पश्चिम बंगाल और झारखंड में आदिवासियों के बीच रहकर उन्होंने उनकी समस्याओं को समझा और पत्रिका के माध्यम से उनके मुद्दों को उठाया.

महाश्वेता देवी को कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया, जिनमें ‘साहित्य अकादमी’ (1979), ‘ज्ञानपीठ’ (1996), ‘रेमन मैग्सेसे’ (1997), और ‘पद्म विभूषण’ (2006) शामिल हैं. भारत की प्रख्यात लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता और आदिवासी अधिकारों की प्रबल समर्थक महाश्वेता देवी का 28 जुलाई 2016 को निधन हुआ, लेकिन उनकी लेखनी और सामाजिक कार्य आज भी साहित्यकारों, कार्यकर्ताओं और पाठकों को प्रेरित करते हैं.

एफएम/एएस

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