Next Story
Newszop

जालौन: जल संकट से निपटने के लिए किसान मूंग की कर रहे खेती, न केवल जलस्तर सुधरेगा बल्कि कमाएंगे लाखों रुपये

Send Push
विशाल वर्मा, जालौन: बुंदेलखंड की धरती से अब एक नई कहानी उभर रही है। पिपरमेंट (मेंथा) की खुशबू से महकने वाले खेतअब पानी बचाने की मुहिम का हिस्सा बन रहे हैं। जल संकट से जूझ रहे इस क्षेत्र में किसानों ने पारंपरिक मेंथा की खेती को कम करके मूंग जैसी कम पानी वाली फसलों को अपनाया है। यह बदलाव न सिर्फ जलस्तर को सुधारने की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि बुंदेलखंड की सूखाग्रस्त छवि को बदलने की भी एक कोशिश है। दरअसल, जालौन में किसानों ने पानी बचाने को लेकर एक अनूठी पहल की शुरुआत की है। बुंदेलखंड के किसानों ने परंपरागत मेंथा की जगह अब मूंग की खेती को अपनाकर इस बदलाव की शुरुआत की है। में जल संकट से निपटने में यह प्रयोग काफी मददगार साबित हो रहा है। लाखों लीटर में बर्बाद होने वाला पानी अब भूगर्भ स्तर की बढ़ाने में मददगार साबित हो रहा है। प्लांट का नया खतरापिपरामेंट की खेती के प्रति किसानों का बढ़ता रुझान और जमीनी पानी के अंधाधुंध दोहन धरती की कोख को सुखा रही थी। पिछले कई सालों से मेंथा किसानों की जेबें तो गर्म कर रही हैं, साथ ही यह फसल भूगर्भ जलस्तर को भी तेजी से नीचे खिसका रही है। इस खेती के प्लांट का नया खतरा भी सामने आया है। फसल के बाद प्लांट में तैयार होने वाला पिपरमेंट भी लोगों की जान लेने लगा है। मेंथा की खेती का चलन बढ़ापिछले एक दशक में बुंदेलखंड में मेंथा की खेती का चलन बढ़ा है। सूखे बुंदेलखंड में लोग अधिक पानी वाली इस फसल को केवल इस लिए उगा रहे हैं, क्योंकि उन्हें कम लागत में अच्छा मुनाफा होता है। पिररमेंट के लिए मैंथा की खेती कर रहे किसानों का कहना है 3 माह की इस फसल को औसतन 12 से 12 बार सिंचाई की जरूरत होती है। एक बार की सिंचाई में एक बीघे मेंथा की फसल में औसतन 30 से 35 हजार लीटर पानी की जरूरत होती है। इस लिहाज से एक बीघे की पूरी फसल के लिए तीन से साढ़े तीन लाख लीटर पानी की खपत होती है। फसल तैयार हो जाने के बाद इससे मेंथा ऑयल बनाया जाता है। 1 लीटर मेंथा तेल के लिए करीब 1,200 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। मेंथा की खेती बंदउत्तर प्रदेश में करीब 40,000 किसानों ने पिछले 3 सालों में पानी की कमी के कारण मेंथा की खेती बंद कर दी है। सबसे ज्यादा मार बुंदेलखंड के किसानों पर पड़ी है। राज्य सरकार ने किसानों की कमाई बढ़ाने के लिए 2005 में इस क्षेत्र में मेंथा की खेती शुरू की थी। लेकिन क्षेत्र में लगातार पड़ रहे सूखे को देखते हुए सिंचाई की लागत बढ़ गई है और फिर एक साल बाद मेंथा का रकबा घटकर 0.15 मिलियन हेक्टेयर रह गया। हालांकि 2011 के लिए कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन विभाग का अनुमान है कि यह 0.1 मिलियन हेक्टेयर से कम होगा। जालौन के गधेर गांव के किसान लालूराम निरंजन ने अफसोस जताते हुए कहा वह 2005 में जिले में मेंथा की खेती करने वाले पहले किसानों में से एक थे। मेंथा से 3 गुना अधिक होता है फायदाजालौन जिले के किसानों ने बताया कि प्रति एकड़ (0.4 हेक्टेयर) 60,000 रुपये प्रति वर्ष का रिटर्न मिलता था और यह गेहूं की खेती से तीन गुना है। उन्होंने कहा कि पहले साल में उन्होंने 75,000 रुपये का लाभ कमाया। तब जाकर जिले में बड़ी संख्या में किसानों ने इस फसल की ओर रुख किया। उन्होंने 5 लाख रुपये की लागत से मेंथा आसवन इकाई स्थापित की। अब भूजल स्तर गिरने के कारण मेंथा की खेती तेजी से कम हो रही है। एक हेक्टेयर मेंथा की फसल की बुवाई पर करीब 25 हजार रुपये तक का खर्च आता है। जबकि एक हेक्टेयर जमीन पर मेंथा की खेती करने पर 100 लीटर तक तेल का उत्पादन हासिल किया जा सकता है। अब मूंग की होती है खेतीपानी के संकट और बेमौसम बारिश को देखते हुए यहां के किसानों ने मूंग की खेती करने को अपना भविष्य बना लिया है। क्योंकि यह फसल कम पानी में भी अच्छी तरह से उगाई जा सकती है, जिससे किसानों को पानी की कमी के समय में भी फसल उगाने में मदद मिलती है। इसके अलावा मूंग की फसल की मांग बाजार में अधिक होती है, जिससे किसानों को अच्छी कीमत मिलती है। स्थानीय किसानों की प्रतिक्रियाबुंदेलखंड क्षेत्र के जालौन के किसानों ने बताया कि वे अब मूंग की खेती को अपनाकर न केवल पानी की बचत कर रहे हैं, बल्कि अपनी आय में भी वृद्धि कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मूंग की फसल की देखभाल भी आसान है और यह फसल जल्दी तैयार हो जाती है, जिससे वे दूसरी फसल भी उगा सकते हैं। आय में भी वृद्धि इस बार मूंग की खेती बुंदेलखंड के किसानों के लिए उम्मीद की किरण साबित हो रही है। इससे न केवल वे पानी की बचत कर रहे हैं, बल्कि अपनी आय में भी वृद्धि कर रहे हैं। आने वाले समय में उम्मीद है कि और अधिक किसान इस फसल को अपनाएंगे और अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार करेंगे। जालौन के किसानों ने 46000 हेक्टेयर में मूंग की फसल बोकर करीब 220.8 बिलियन लीटर पानी की बचत की है। किसानों का यह प्रयोग एक तरह से जल संरक्षण को मजबूती प्रदान करेगा। डीएम ने भी सराहावहीं जिलाधिकारी जालौन राजेश कुमार पांडेय ने बताया कि मेंथा की फसल से ज्यादा लाभ मूंग की फसल में होता है इसीलिए आय बढ़ाने हेतु प्रशासन की तरफ से जालौन के किसानों को जागरूक किया गया। यह प्रयास काफी हद तक सफल रहा। इस बार किसानों ने मेंथा की फसल को छोड़कर मूंग की फसल को अपनाया है। 46,000 हेक्टेयर में मांग की फसल में 147.2 बिलियन लीटर पानी की जरूरत होती है। जबकि, मेंथा में 368 बिलियन लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। इस हिसाब से जालौन के किसानों ने पानी के महत्व को समझते हुए जल संरक्षण की ओर कदम बढ़ाया है और मूंग की फसल को अपनाकर कुल 220.8 बिलियन लीटर पानी की बचत की है।
Loving Newspoint? Download the app now