क्या कोई बाप अपनी ही औलाद का कातिल बन सकता है? आज हम आपके सामने 70 साल के ऐसे ही बेरहम बाप की कहानी लेकर आए हैं। जिसने अपनी 3 बेटियों को दर्दनाक मौत देने की कोशिश की। बड़ी खुशकिस्मत थी, लेकिन दोनों छोटी बेटियां तड़प-तड़पकर दुनिया छोड़ गई। कानून ने सजा सुनाई, लेकिन जेल की सलाखें भी उसे बांधकर नहीं रख पाईं। 4 साल की तलाश और कड़ी मेहनत के बाद दिल्ली पुलिस ने आखिरकार इस खूनी बाप को वापस से गिरफ्त में ले लिया है।
दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के इंटर-स्टेट सेल को हमीदुल्लाह बुंदू खान की तलाश पिछले चार साल से थी। पैरोल पर बाहर आया तो फिर वापस लौटा ही नहीं। फरार हो गया। अब खुफिया जानकारी और दिल्ली पुलिस की कड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार सफलता हासिल की है। इस बूढ़े कातिल को एक गलती से फिर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। दिल्ली पुलिस ने गाजियाबाद के लोनी से 25 जुलाई को उसके पुराने से घर से धर दबोचा है।
20 साल पहले की वो रात
दिल्ली के ओल्ड मुस्तफाबाद में रहने वाले हमीदुल्लाह की पत्नी पहले ही दुनिया छोड़ चुकी थी। परिवार में 3 बेटियां थीं। एक की शादी हो गई थी और 2 नाबालिग थी। सब ठीक लग रहा था, लेकिन 29 जुलाई, 1999 की रात को सब बदल गया। जिस बाप पर बेटियों को खुद से ज्यादा भरोसा था, वो कुछ कैप्सूल लेकर आया। बोला कि पेट दर्द की दवा है, खा लो। बड़ी बेटी को शक हुआ, लेकिन बाप कैप्सूल खाने की जिद करने लगा। तीनों बेटियों ने बाप का आदेश मानकर कैप्सूल खा लिए।
सूझबूझ से बची बड़ी बेटी की जान
बड़ी बेटी की शादी हो चुकी थी और कुछ दिन के लिए रहने को घर आई थी। उसे अपने पिता की हरकतों पर शक हो रहा था। समझ नहीं पा रही थी कि जब पेट में दर्द है ही नहीं तो दवा क्यों खानी। पिता की जिद उसने कैप्सूल खाया तो, लेकिन गले से नीचे नहीं उतरने दिया। और तुरंत उसे बाहर कर दिया। शक गहराता देख वो तुरंत पास के पुलिस थाने भागी। जब वो पुलिस को लेकर लौटी तो घर का नजारा देख उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। घर खुला पड़ा था और उसकी दोनों छोटी बहनों की लाश पड़ी हुई थी। शरीर नीला पड़ चुका था और मुंह से झाग निकल रहा था। बेरहम बाप फरार था।
अदालत ने सुनाई 20 साल की सजा
हालांकि हमीदुल्लाह पुलिस से ज्यादा दूर नहीं भाग सका। अदालत ने उसे 20 साल की सजा सुनाई। करीब 4 साल पहले वो पैरोल पर बाहर आया। वापस जाने की तारीख तो आई, लेकिन वो लौटा ही नहीं। भाग गया। तभी से पुलिस को उसकी तलाश थी। एसीपी रमेश चंद्र लांबा की निगरानी और इंस्पेक्टर सतेंद्र पुनिया के नेतृत्व में टीम गठित की गई। इंस्पेक्टर सोहन लाल, सब इंस्पेक्टर मुकेश, एसआई विनय और कॉन्स्टेबल अमित भी काम में जुट गए। ऑपरेशन में कई हफ्ते लग गए। फिर पता चला कि वो गाजियाबाद के लोनी स्थित एक घर में आया है। बस पुलिस ने उसे वहीं से दबोच लिया।
दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के इंटर-स्टेट सेल को हमीदुल्लाह बुंदू खान की तलाश पिछले चार साल से थी। पैरोल पर बाहर आया तो फिर वापस लौटा ही नहीं। फरार हो गया। अब खुफिया जानकारी और दिल्ली पुलिस की कड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार सफलता हासिल की है। इस बूढ़े कातिल को एक गलती से फिर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। दिल्ली पुलिस ने गाजियाबाद के लोनी से 25 जुलाई को उसके पुराने से घर से धर दबोचा है।
20 साल पहले की वो रात
दिल्ली के ओल्ड मुस्तफाबाद में रहने वाले हमीदुल्लाह की पत्नी पहले ही दुनिया छोड़ चुकी थी। परिवार में 3 बेटियां थीं। एक की शादी हो गई थी और 2 नाबालिग थी। सब ठीक लग रहा था, लेकिन 29 जुलाई, 1999 की रात को सब बदल गया। जिस बाप पर बेटियों को खुद से ज्यादा भरोसा था, वो कुछ कैप्सूल लेकर आया। बोला कि पेट दर्द की दवा है, खा लो। बड़ी बेटी को शक हुआ, लेकिन बाप कैप्सूल खाने की जिद करने लगा। तीनों बेटियों ने बाप का आदेश मानकर कैप्सूल खा लिए।
सूझबूझ से बची बड़ी बेटी की जान
बड़ी बेटी की शादी हो चुकी थी और कुछ दिन के लिए रहने को घर आई थी। उसे अपने पिता की हरकतों पर शक हो रहा था। समझ नहीं पा रही थी कि जब पेट में दर्द है ही नहीं तो दवा क्यों खानी। पिता की जिद उसने कैप्सूल खाया तो, लेकिन गले से नीचे नहीं उतरने दिया। और तुरंत उसे बाहर कर दिया। शक गहराता देख वो तुरंत पास के पुलिस थाने भागी। जब वो पुलिस को लेकर लौटी तो घर का नजारा देख उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। घर खुला पड़ा था और उसकी दोनों छोटी बहनों की लाश पड़ी हुई थी। शरीर नीला पड़ चुका था और मुंह से झाग निकल रहा था। बेरहम बाप फरार था।
अदालत ने सुनाई 20 साल की सजा
हालांकि हमीदुल्लाह पुलिस से ज्यादा दूर नहीं भाग सका। अदालत ने उसे 20 साल की सजा सुनाई। करीब 4 साल पहले वो पैरोल पर बाहर आया। वापस जाने की तारीख तो आई, लेकिन वो लौटा ही नहीं। भाग गया। तभी से पुलिस को उसकी तलाश थी। एसीपी रमेश चंद्र लांबा की निगरानी और इंस्पेक्टर सतेंद्र पुनिया के नेतृत्व में टीम गठित की गई। इंस्पेक्टर सोहन लाल, सब इंस्पेक्टर मुकेश, एसआई विनय और कॉन्स्टेबल अमित भी काम में जुट गए। ऑपरेशन में कई हफ्ते लग गए। फिर पता चला कि वो गाजियाबाद के लोनी स्थित एक घर में आया है। बस पुलिस ने उसे वहीं से दबोच लिया।