शरद केलकर उन फेमस एक्टर्स में से हैं, जो फिल्मों, ओटीटी और छोटे पर्दे तीनों पर पसंद किए गए हैं। 'बाहुबली' में प्रभास की आवाज बनकर शोहरत बटोरने वाले शरद ने एक बार फिर छोटे पर्दे का रुख किया है, नए सीरियल 'तुम से तुम तक' से। उनसे एक खास बातचीत।
एक समय था, जब आप हकलाया करते थे और वहां से लेकर आवाज की दुनिया का इतना बड़ा बनने का सफर कैसा था? इंडस्ट्री में आवाज के मामले में आप और अमिताभ बच्चन को ही मानक माना जाता है।
-शाहरुख खान की फिल्म का डायलॉग है न कि किसी चीज को आप शिद्दत से चाहो, तो सारी कायनात उसमें लग जाती है, मगर मेरे लिए तो ये मरता क्या न करता वाली हालत थी। मैं तो पढ़ाई -लिखाई करके अच्छी-खासी नौकरी कर रहा था कि मुझे एक्टिंग के कीड़े ने काटा और मैं यहां आ गया, पर जब मैं यहां आया, तो मेरी उम्र अच्छी-खासी 28 साल की थी। मैं अपना ग्लोरी पीरियड खो चुका था। मुझे किसी भी हाल में इस क्षेत्र में पैर जमाने थे। चूंकि मैं दिखता अच्छा था, तो मुझे काम तो मिलता था, मगर मेरा काफी मजाक उड़ता था।
'दो लाइन नहीं बोल पाता, हकला है'
अच्छा चार-पांच लाइन वाले ऑडिशन में तो पास हो जाता था, मगर असली औकात तब पता चलती, जब सेट पर रोल के लिए लंबे-लंबे डायलॉग्स बोलने पड़ते थे। फिर ऐसा हुआ कि मुझे शोज से निकाला जाने लगा या फिर मजाक उड़ाने के साथ-साथ ये कहा जाता कि इसे कम लाइंस दो, ये तो बोल ही नहीं पाता, हकला है। अरे, इसका डायलॉग चल रहा है, चलो चाय पीकर आते हैं, तो जब ऐसी-ऐसी बातें सुननी पड़ीं, तो दुख तो बहुत होता था, मगर मेरे पास वापस लौटने का ऑप्शन नहीं था। मगर मुझे मेरे को-एक्टर्स बहुत अच्छे मिले। जब मैं 'सिंदूर' कर रहा था, तब मेरे साथ तन्वी आजमी थीं। जयती भाटिया, सुमुखी पेंडसे, तो ये सभी एक्टर्स मुझे सलाह देते कि धीमे-धीमे बात करो, कोई कहता कंचे मुंह में रखकर डायलॉग बोलो, तो कोई पेंसिल फंसा कर बात करने कहता। मैं भी तरह-तरह की तरकीबें आजमाता और फिर मैंने अपना भी विश्लेषण करना शुरू कर दिया। मैंने बच्चन साहब को ऑब्जर्व करना शुरू किया और मैंने पाया कि बच्चन साहब और दिलीप साहब (दिलीप कुमार) दोनों ही डायलॉग बोलते समय बीच में पॉज लेते हैं और उस समय सांस लेते हैं। तब मेरी समझ आया कि मेरा ब्रीदिंग पैटर्न गलत है। मैं सांस लेना भूल जाता हूं और इसी कारण हकलाता हूं। फिर मैंने अपनी ब्रीदिंग पर ध्यान देना शुरू किया और मेरा हकलाना सही हो गया।
एक्ट्रेस कीर्ति से आपकी शादी को 20 साल हो गए, मगर एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री जिसे काजल की कोठरी कहा जाता है, उसमें आप दाग से बचे रहे, कभी आपका नाम किसी से नहीं जुड़ा?
-ये जो नजरिया है न, ये आज की तारीख में पूरी तरह से गलत है। आज की डेट में सबसे सफेद कोठरी यही है। मुझे अगर किसी अच्छे दोस्त के साथ कॉफी पीने भी जाना हो, तो दस बार सोचना पड़ता है कि वहां मुझे देखकर पैप्स या मीडिया क्या दिखा दे या छाप दे पता नहीं। तो आज हमारी इंडस्ट्री में आप ऐसा-वैसा कुछ नहीं कर सकते। आज जो दूसरी इंडस्ट्री में हो रहा है, उसका पांच पर्सेंट भी हमारे यहां नहीं हो रहा। आप चाहे मेडिकल जगत देखें या कॉर्पोरेट वर्ल्ड, रिश्तों का करप्शन वहां हमारी इंडस्ट्री की तुलना में कहीं ज्यादा है। मेरे बहुत दोस्त हैं, जो बताते रहते हैं कि उनके कार्यक्षेत्र में क्या-क्या हो रहा है? असल में आज लोग बहुत ही फ्रस्ट्रेटेड हैं। काम के घंटे बढ़ गए हैं। तनाव बहुत ज्यादा है। इस स्ट्रेसफुल लाइफ में डिवोर्स बढ़ रहे हैं। एक्स्ट्रामेरिटल अफेयर्स हो रहे हैं, मर्डर्स तक हो रहे हैं। अब तो सब कुछ मीडिया में आ जाता है, आप कहां से निकल रहे हैं और कहां पहुंच रहे हैं, क्योंकि हम पर सबकी निगाहें रहती हैं।
आप एक ऐसे अदाकार हैं, जो एक ही समय में फिल्म, ओटीटी और टीवी पर काम कर रहे हैं, आप 8 घंटे की शिफ्ट के बारे में क्या सोचते हैं?
-देखिए, आप जिस फील्ड में हैं, उसे आपने चुना है, तो आप हर जॉब के प्रोज और कॉन्स जानते हैं।आपसे किसी ने जबरदस्ती नहीं की है। हमारा पेशा काफी डिमांडिंग है, तो आपको टाइम देना पड़ेगा कि ये 7 दिन आ रहा है या 5 दिन। आपको पता है कि आप मुंबई जैसे शहर में हैं, जहां आपको शूटिंग में पहुंचने के लिए ट्रैफिक का सामना करना पड़ता है और टाइम लग जाता है। आपको अपनी इंडस्ट्री के हिसाब-किताब से काम करना पड़ेगा। एक बार आप किसी मुकाम पर पहुंच जाएं, तो फिर आप अपने काम का पैमाना सेट कर सकते हैं। मगर ये प्रोफेशन है डिमांडिंग।इसमें आप शिकायत कैसे कर सकते हैं। आप सेट पर अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए बात कर सकते हैं, पर आपको अपने सीन और काम तो डिलीवर करना ही होगा। हां आपको अपनी हेल्थ का ध्यान तो रखना ही होगा।
फिल्मों और ओटीटी पर सक्रिय रहते हुए आपने लंबे समय बाद टीवी पर वापसी की। कोई खास वजह?
-मैं टीवी से गायब नहीं था। पिछला शो 'बैरी पिया' (2010) था। मैं कमिटमेंट को लेकर बहुत सीरियस हूं और ओवर कमिटमेंट से बचता हूं। तभी किसी प्रोजेक्ट के लिए हां कहता हूं, जब उसे निभा सकूं। 'बैरी पिया' के बाद टीवी के कई ऑफर थे, लेकिन फिल्में भी करनी थीं, इसलिए डेट्स को लेकर चुनना पड़ा। राजन शाही ने जब कुछ तो लोग कहेंगे ऑफर किया, तो वो हफ्ते में चार दिन आने वाला शो था। राजन जी तेज काम करते हैं और मैं भी। मैं उन एक्टर्स में से नहीं जो कॉस्ट्यूम बदलने में वक्त लें, मैं सेट पर ही कपड़े बदल लेता हूं। सोचता हूं, अगर बच्चन साहब ऐसा कर सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं? टीवी पर मैंने 'सात फेरे', 'आदर्श दामाद', 'आदर्श बेटा', 'बैरी पिया' जैसे रोल किए। एक वक्त के बाद उन्हीं जैसे किरदारों के ऑफर आने लगे। कुछ तो लोग कहेंगे में मच्योर लव स्टोरी की, फिर वैसे ही रोल आने लगे। 'एजेंट राघव' किया तो पुलिस वाले रोल्स की भरमार हो गई। 'कोई लौट के आया' में ब्लाइंड विलेन था, जिसे काफी सराहा गया। अब कुछ नया करना चाहता था और 'तुम से तुम तक' में वैसी ही चुनौती मिली, दो अलग दुनिया के किरदारों की मुलाकात, जो मैंने पहले नहीं निभाया था। फिर सीरियल के मेकर्स ने मेरे ओटीटी शोज और फिल्मों के कमिटमेंट के साथ-साथ ये डेट्स भी एडजस्ट कीं। मामला जम गया।
आपका शो एज गैप वाली लव स्टोरी पर आधारित है, मगर आज प्यार-मोहब्बत के मामले में सिचुएशनशिप, घोस्टिंग, ब्रेड्क्रबिंग जैसे टर्म्स आ गए हैं, क्या कहना चाहेंगे इस पर?
-अरे हां, मैंने तो पॉकेटिंग के बारे में भी सुना है। सिचुएशनशिप तो बहुत सुनता हूं। आखिरकार ये बला है क्या? मैं अभी इस लीग में आया नहीं हूं, क्योंकि मेरी बेटी अभी 10-11 साल की है। मैं पूछूंगा निहारिका (सीरियल की उनकी हीरोइन निहारिका चौकसे) से। अब मैं यही कहूंगा कि हमारे समय में टर्म्स नहीं थे, मगर ये चीजें तो तब भी थीं। डबल डेटिंग तो तब भी लोग करते ही थे। अब जहां तक प्यार की बात, तो इसे शब्दों में बयान कैसे करें, मगर इतना जरूर कह सकता हूं कि मेरे लिए प्यार का मतलब है खुशी।
एक समय था, जब आप हकलाया करते थे और वहां से लेकर आवाज की दुनिया का इतना बड़ा बनने का सफर कैसा था? इंडस्ट्री में आवाज के मामले में आप और अमिताभ बच्चन को ही मानक माना जाता है।
-शाहरुख खान की फिल्म का डायलॉग है न कि किसी चीज को आप शिद्दत से चाहो, तो सारी कायनात उसमें लग जाती है, मगर मेरे लिए तो ये मरता क्या न करता वाली हालत थी। मैं तो पढ़ाई -लिखाई करके अच्छी-खासी नौकरी कर रहा था कि मुझे एक्टिंग के कीड़े ने काटा और मैं यहां आ गया, पर जब मैं यहां आया, तो मेरी उम्र अच्छी-खासी 28 साल की थी। मैं अपना ग्लोरी पीरियड खो चुका था। मुझे किसी भी हाल में इस क्षेत्र में पैर जमाने थे। चूंकि मैं दिखता अच्छा था, तो मुझे काम तो मिलता था, मगर मेरा काफी मजाक उड़ता था।
'दो लाइन नहीं बोल पाता, हकला है'
अच्छा चार-पांच लाइन वाले ऑडिशन में तो पास हो जाता था, मगर असली औकात तब पता चलती, जब सेट पर रोल के लिए लंबे-लंबे डायलॉग्स बोलने पड़ते थे। फिर ऐसा हुआ कि मुझे शोज से निकाला जाने लगा या फिर मजाक उड़ाने के साथ-साथ ये कहा जाता कि इसे कम लाइंस दो, ये तो बोल ही नहीं पाता, हकला है। अरे, इसका डायलॉग चल रहा है, चलो चाय पीकर आते हैं, तो जब ऐसी-ऐसी बातें सुननी पड़ीं, तो दुख तो बहुत होता था, मगर मेरे पास वापस लौटने का ऑप्शन नहीं था। मगर मुझे मेरे को-एक्टर्स बहुत अच्छे मिले। जब मैं 'सिंदूर' कर रहा था, तब मेरे साथ तन्वी आजमी थीं। जयती भाटिया, सुमुखी पेंडसे, तो ये सभी एक्टर्स मुझे सलाह देते कि धीमे-धीमे बात करो, कोई कहता कंचे मुंह में रखकर डायलॉग बोलो, तो कोई पेंसिल फंसा कर बात करने कहता। मैं भी तरह-तरह की तरकीबें आजमाता और फिर मैंने अपना भी विश्लेषण करना शुरू कर दिया। मैंने बच्चन साहब को ऑब्जर्व करना शुरू किया और मैंने पाया कि बच्चन साहब और दिलीप साहब (दिलीप कुमार) दोनों ही डायलॉग बोलते समय बीच में पॉज लेते हैं और उस समय सांस लेते हैं। तब मेरी समझ आया कि मेरा ब्रीदिंग पैटर्न गलत है। मैं सांस लेना भूल जाता हूं और इसी कारण हकलाता हूं। फिर मैंने अपनी ब्रीदिंग पर ध्यान देना शुरू किया और मेरा हकलाना सही हो गया।
एक्ट्रेस कीर्ति से आपकी शादी को 20 साल हो गए, मगर एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री जिसे काजल की कोठरी कहा जाता है, उसमें आप दाग से बचे रहे, कभी आपका नाम किसी से नहीं जुड़ा?
-ये जो नजरिया है न, ये आज की तारीख में पूरी तरह से गलत है। आज की डेट में सबसे सफेद कोठरी यही है। मुझे अगर किसी अच्छे दोस्त के साथ कॉफी पीने भी जाना हो, तो दस बार सोचना पड़ता है कि वहां मुझे देखकर पैप्स या मीडिया क्या दिखा दे या छाप दे पता नहीं। तो आज हमारी इंडस्ट्री में आप ऐसा-वैसा कुछ नहीं कर सकते। आज जो दूसरी इंडस्ट्री में हो रहा है, उसका पांच पर्सेंट भी हमारे यहां नहीं हो रहा। आप चाहे मेडिकल जगत देखें या कॉर्पोरेट वर्ल्ड, रिश्तों का करप्शन वहां हमारी इंडस्ट्री की तुलना में कहीं ज्यादा है। मेरे बहुत दोस्त हैं, जो बताते रहते हैं कि उनके कार्यक्षेत्र में क्या-क्या हो रहा है? असल में आज लोग बहुत ही फ्रस्ट्रेटेड हैं। काम के घंटे बढ़ गए हैं। तनाव बहुत ज्यादा है। इस स्ट्रेसफुल लाइफ में डिवोर्स बढ़ रहे हैं। एक्स्ट्रामेरिटल अफेयर्स हो रहे हैं, मर्डर्स तक हो रहे हैं। अब तो सब कुछ मीडिया में आ जाता है, आप कहां से निकल रहे हैं और कहां पहुंच रहे हैं, क्योंकि हम पर सबकी निगाहें रहती हैं।
आप एक ऐसे अदाकार हैं, जो एक ही समय में फिल्म, ओटीटी और टीवी पर काम कर रहे हैं, आप 8 घंटे की शिफ्ट के बारे में क्या सोचते हैं?
-देखिए, आप जिस फील्ड में हैं, उसे आपने चुना है, तो आप हर जॉब के प्रोज और कॉन्स जानते हैं।आपसे किसी ने जबरदस्ती नहीं की है। हमारा पेशा काफी डिमांडिंग है, तो आपको टाइम देना पड़ेगा कि ये 7 दिन आ रहा है या 5 दिन। आपको पता है कि आप मुंबई जैसे शहर में हैं, जहां आपको शूटिंग में पहुंचने के लिए ट्रैफिक का सामना करना पड़ता है और टाइम लग जाता है। आपको अपनी इंडस्ट्री के हिसाब-किताब से काम करना पड़ेगा। एक बार आप किसी मुकाम पर पहुंच जाएं, तो फिर आप अपने काम का पैमाना सेट कर सकते हैं। मगर ये प्रोफेशन है डिमांडिंग।इसमें आप शिकायत कैसे कर सकते हैं। आप सेट पर अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए बात कर सकते हैं, पर आपको अपने सीन और काम तो डिलीवर करना ही होगा। हां आपको अपनी हेल्थ का ध्यान तो रखना ही होगा।
फिल्मों और ओटीटी पर सक्रिय रहते हुए आपने लंबे समय बाद टीवी पर वापसी की। कोई खास वजह?
-मैं टीवी से गायब नहीं था। पिछला शो 'बैरी पिया' (2010) था। मैं कमिटमेंट को लेकर बहुत सीरियस हूं और ओवर कमिटमेंट से बचता हूं। तभी किसी प्रोजेक्ट के लिए हां कहता हूं, जब उसे निभा सकूं। 'बैरी पिया' के बाद टीवी के कई ऑफर थे, लेकिन फिल्में भी करनी थीं, इसलिए डेट्स को लेकर चुनना पड़ा। राजन शाही ने जब कुछ तो लोग कहेंगे ऑफर किया, तो वो हफ्ते में चार दिन आने वाला शो था। राजन जी तेज काम करते हैं और मैं भी। मैं उन एक्टर्स में से नहीं जो कॉस्ट्यूम बदलने में वक्त लें, मैं सेट पर ही कपड़े बदल लेता हूं। सोचता हूं, अगर बच्चन साहब ऐसा कर सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं? टीवी पर मैंने 'सात फेरे', 'आदर्श दामाद', 'आदर्श बेटा', 'बैरी पिया' जैसे रोल किए। एक वक्त के बाद उन्हीं जैसे किरदारों के ऑफर आने लगे। कुछ तो लोग कहेंगे में मच्योर लव स्टोरी की, फिर वैसे ही रोल आने लगे। 'एजेंट राघव' किया तो पुलिस वाले रोल्स की भरमार हो गई। 'कोई लौट के आया' में ब्लाइंड विलेन था, जिसे काफी सराहा गया। अब कुछ नया करना चाहता था और 'तुम से तुम तक' में वैसी ही चुनौती मिली, दो अलग दुनिया के किरदारों की मुलाकात, जो मैंने पहले नहीं निभाया था। फिर सीरियल के मेकर्स ने मेरे ओटीटी शोज और फिल्मों के कमिटमेंट के साथ-साथ ये डेट्स भी एडजस्ट कीं। मामला जम गया।
आपका शो एज गैप वाली लव स्टोरी पर आधारित है, मगर आज प्यार-मोहब्बत के मामले में सिचुएशनशिप, घोस्टिंग, ब्रेड्क्रबिंग जैसे टर्म्स आ गए हैं, क्या कहना चाहेंगे इस पर?
-अरे हां, मैंने तो पॉकेटिंग के बारे में भी सुना है। सिचुएशनशिप तो बहुत सुनता हूं। आखिरकार ये बला है क्या? मैं अभी इस लीग में आया नहीं हूं, क्योंकि मेरी बेटी अभी 10-11 साल की है। मैं पूछूंगा निहारिका (सीरियल की उनकी हीरोइन निहारिका चौकसे) से। अब मैं यही कहूंगा कि हमारे समय में टर्म्स नहीं थे, मगर ये चीजें तो तब भी थीं। डबल डेटिंग तो तब भी लोग करते ही थे। अब जहां तक प्यार की बात, तो इसे शब्दों में बयान कैसे करें, मगर इतना जरूर कह सकता हूं कि मेरे लिए प्यार का मतलब है खुशी।
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