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गर्भावस्था में Double Marker Test: जानें इसके महत्व और प्रक्रिया

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गर्भावस्था की पहली तिमाही में जांच का महत्व

गर्भावस्था के प्रारंभिक चरण में मां और बच्चे के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए कई प्रकार की जांचें की जाती हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण जांच है दोहरा मार्कर परीक्षण, जो गर्भ में पल रहे बच्चे में संभावित क्रोमोसोमल असामान्यताओं का पता लगाने के लिए किया जाता है। यह परीक्षण विशेष रूप से डाउन सिंड्रोम, एडवर्ड्स सिंड्रोम (ट्राइसॉमी 18), और पटौ सिंड्रोम (ट्राइसॉमी 13) जैसी स्थितियों का प्रारंभिक मूल्यांकन करता है। यह एक सरल रक्त परीक्षण है, जिसे सही समय पर कराना आवश्यक है ताकि आवश्यक कदम उठाए जा सकें।


Double Marker Test में क्या-क्या शामिल है

इस परीक्षण में मां के रक्त में दो प्रमुख बायोमार्कर की जांच की जाती है: मुफ्त बीटा-एचसीजी और PAPP-A (गर्भावस्था से जुड़े प्लाज्मा प्रोटीन ए)। Free Beta-hCG एक हार्मोन है, जो प्लेसेंटा द्वारा उत्पन्न होता है, और इसका उच्च स्तर डाउन सिंड्रोम का संकेत दे सकता है। वहीं, PAPP-A एक प्रोटीन है, जिसका कम स्तर क्रोमोसोमल असामान्यताओं की संभावना को बढ़ा सकता है। इन दोनों हार्मोनों के स्तर को अल्ट्रासाउंड (NT Scan) और अन्य कारकों के साथ मिलाकर एक रिस्क रेशियो तैयार किया जाता है।


Double Marker Test कराने का सही समय

इस परीक्षण को गर्भावस्था के 9वें से 13वें सप्ताह के बीच कराना सबसे उपयुक्त होता है। हालांकि, डॉक्टर इसे आमतौर पर 11वें से 13वें सप्ताह के बीच कराने की सलाह देते हैं, ताकि अन्य जांचों जैसे न्युकल ट्रांसलुसेंसी स्कैन (NT Scan) के साथ मिलाकर सटीक परिणाम प्राप्त किए जा सकें। यदि यह समय निकल जाए, तो चौगुनी मार्कर परीक्षण का विकल्प भी उपलब्ध है, जिसे 15 से 21 सप्ताह के बीच किया जा सकता है।


Double Marker Test के परिणामों की व्याख्या

टेस्ट के परिणाम सामान्यतः एक अनुपात (Ratio) में दिए जाते हैं, जैसे 1:250 या 1:1000। इसका अर्थ है कि उदाहरण के लिए, 1:1000 का मतलब है कि 1000 गर्भवती महिलाओं में से 1 को ऐसे परिणाम मिल सकते हैं जो संभावित असामान्यता की ओर इशारा करते हैं। यदि अनुपात 1:250 या इससे कम है, तो इसे भारी जोखिम माना जाता है, और डॉक्टर आगे की जांच जैसे गैर-इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग की सिफारिश कर सकते हैं।


Double Marker Test के लाभ और विश्वसनीयता

यह परीक्षण न केवल सुरक्षित और गैर-आक्रामक है, बल्कि गर्भावस्था के प्रारंभिक चरण में संभावित जटिलताओं का पता लगाने में मदद करता है। यह माता-पिता को समय पर निर्णय लेने में सहायता करता है। विशेष रूप से, जिन महिलाओं की उम्र 35 वर्ष से अधिक है या जिनके परिवार में कोई जेनेटिक डिसऑर्डर है, उनके लिए यह जांच अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत में इस परीक्षण की लागत ₹1,000 से ₹5,000 के बीच हो सकती है, जो स्थान और प्रयोगशाला पर निर्भर करती है।


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