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कैसे ब्रह्माजी के कमल से प्रकट हुआ पुष्कर तीर्थ? वीडियो में जाने इसकी रहस्यमयी कथा

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सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा की यज्ञ स्थली और ऋषि-मुनियों की तपस्थली तीर्थगुरु पुष्कर नाग पर्वत के बीच बसा है। नाराज पत्नी के श्राप के कारण देश में ब्रह्माजी का एकमात्र मंदिर पुष्कर में है। पुष्कर सरोवर का निर्माण भी स्वयं ब्रह्माजी ने किया था। जिस प्रकार प्रयाग को तीर्थराज कहा जाता है, उसी प्रकार इस तीर्थ को पुष्कर राज भी कहा जाता है। ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्क पुष्कर के देवता रुद्र हैं। इन तीनों पुष्करों का निर्माण ब्रह्माजी के कमल पुष्प से हुआ है। कार्तिक में पुष्कर में देश का सबसे बड़ा ऊंट मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं। सांप्रदायिक सौहार्द की नगरी अजमेर से करीब 11 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में पुष्कर में अगस्त्य, वामदेव, जमदग्नि, भर्तृहरि आदि ऋषियों की गुफाएं आज भी तपस्थली के रूप में नाग पहाड़ में मौजूद हैं। पुष्कर के मुख्य बाजार के अंत में ब्रह्माजी का मंदिर बना है। आदि शंकराचार्य ने संवत 713 में ब्रह्माजी की मूर्ति स्थापित की थी। मंदिर का वर्तमान स्वरूप गोकलचंद पारीक ने 1809 ई. में बनवाया था। यह मंदिर देश में ब्रह्माजी का एकमात्र प्राचीन मंदिर है। मंदिर के पीछे रत्नागिरी पर्वत पर भूतल से दो हजार तीन सौ 69 फीट की ऊंचाई पर ब्रह्माजी की पहली पत्नी सावित्री का मंदिर है।

ये है पौराणिक कथा
परमेश्वर ब्रह्मा और माता सावित्री के बीच दूरियां तब बढ़ गईं, जब ब्रह्माजी ने कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पुष्कर में यज्ञ का आयोजन किया। शास्त्रों के अनुसार पत्नी के बिना यज्ञ पूर्ण नहीं माना जाता। पूजा का शुभ मुहूर्त निकलता जा रहा था। सभी देवी-देवता यज्ञ स्थल पर पहुंच गए, लेकिन सावित्री को पहुंचने में देर हो गई। कहते हैं कि जब शुभ समय बीतने लगा तो ब्रह्माजी ने कोई उपाय न देखकर नंदिनी गाय के मुख से गायत्री को प्रकट किया और उनसे विवाह कर यज्ञ पूर्ण किया। इसी बीच सावित्री जब यज्ञ स्थल पर पहुंची तो ब्रह्माजी के पास गायत्री को बैठा देख क्रोधित हो गईं और उन्होंने ब्रह्माजी को श्राप दे दिया कि पृथ्वी वासी उन्हें भूल जाएंगे और उनकी कभी पूजा नहीं होगी। लेकिन देवताओं की प्रार्थना पर जब वे पिघलीं तो उन्होंने कहा कि ब्रह्माजी की पूजा केवल पुष्कर में ही होगी। इसीलिए यहां के अलावा और कहीं ब्रह्माजी का मंदिर नहीं है। सावित्री का क्रोध इतने पर भी शांत नहीं हुआ। उन्होंने विवाह कराने वाले ब्राह्मण को भी श्राप दे दिया कि चाहे उसे कितना भी दान क्यों न मिल जाए, ब्राह्मण कभी संतुष्ट नहीं होगा। उन्होंने गाय को कलियुग में गंदगी खाने और नारद को आजीवन कुंवारे रहने का श्राप दे दिया। अग्निदेव भी सावित्री के क्रोध से नहीं बच सके। उन्हें भी कलियुग में अपमानित होने का श्राप मिला। पुष्कर में ब्रह्माजी से नाराज सावित्री दूर एक पर्वत की चोटी पर निवास करती हैं।

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