भारत के प्राचीन मंदिर न केवल अपनी भव्य वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं, बल्कि उनमें छुपे ऐसे चमत्कार और रहस्य भी हैं, जो आज तक वैज्ञानिकों के लिए पहेली बने हुए हैं। ऐसा ही एक अनोखा और अलौकिक दृश्य हर साल मकर संक्रांति के दिन देखने को मिलता है, जहां कहा जाता है कि स्वयं सूर्यदेव भगवान शिव की पूजा करते हैं। इस दिव्य घटना का साक्षी बनता है हजारों श्रद्धालु, जो दूर-दूर से इस मंदिर में उमड़ पड़ते हैं।
रहस्यमयी मंदिर का स्थान और महत्वइस मंदिर को लेकर कई दावे हैं। कुछ इसे ओडिशा के कोणार्क से जोड़ते हैं, तो कुछ झारखंड के देवघर या मध्य प्रदेश के उज्जैन का नाम लेते हैं। स्थान भले ही विभिन्न किंवदंतियों में भिन्न हो, लेकिन इस मंदिर की खासियत इसकी वास्तुकला और खगोलीय गणनाओं में निहित है। यह मंदिर हजारों वर्ष पुराना माना जाता है, जिसे प्राचीन वास्तुशास्त्र और खगोलशास्त्र की सूक्ष्म समझ के आधार पर बनाया गया।
मकर संक्रांति के दिन का चमत्कारमकर संक्रांति के दिन, जब सूर्य उत्तरायण होता है, तो सुबह की पहली सूर्य की किरणें मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग पर पड़ती हैं। यह प्रकाश इतना सटीक और केंद्रित होता है कि ऐसा प्रतीत होता है जैसे सूर्यदेव स्वयं शिवलिंग की आरती कर रहे हों। यह दृश्य कुछ ही मिनटों के लिए होता है, और जैसे-जैसे सूर्य ऊपर चढ़ता है, प्रकाश गर्भगृह से हट जाता है।
यह अद्भुत घटना मंदिर की खिड़कियों, द्वारों और गर्भगृह की वास्तु रचना की सटीकता का परिणाम है, जो सूर्य की किरणों को विशेष कोण पर शिवलिंग तक पहुंचाती है। यह खगोलीय घटना साल में केवल एक बार, मकर संक्रांति के दिन घटित होती है, जिससे यह और भी रहस्यमयी बन जाती है।
कैसे संभव हुआ यह चमत्कार?प्राचीन काल में खगोलविदों और वास्तुशास्त्रियों ने सूर्य की चाल, पृथ्वी की स्थिति और खगोलीय गतियों का अध्ययन किया था। इसी गहन ज्ञान के आधार पर उन्होंने इस मंदिर का निर्माण इस तरह किया कि सूर्य की पहली किरणें विशेष दिन गर्भगृह में स्थित शिवलिंग को स्पर्श करें। यह सोच कर ही मन दंग रह जाता है कि हजारों साल पहले, बिना आधुनिक उपकरणों के, इस तरह की गणना और वास्तुकला कैसे संभव हो सकी। यही वजह है कि यह चमत्कार आज भी वैज्ञानिकों के लिए एक रहस्य बना हुआ है।
भक्तों का अनुभव और श्रद्धाहर साल इस दिव्य घटना को देखने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु यहां आते हैं। उनका विश्वास है कि मकर संक्रांति के दिन शिवलिंग पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों से जीवन की सभी परेशानियां दूर होती हैं और भगवान शिव की विशेष कृपा मिलती है। भक्त बताते हैं कि इस समय मंदिर में अद्भुत ऊर्जा का संचार होता है, जिससे आत्मा को शांति मिलती है और मन में भक्ति का भाव गहरा होता है। कई लोग इस अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना और ध्यान भी करते हैं, जिससे उनका आध्यात्मिक विकास होता है।
विज्ञान क्या कहता है?वैज्ञानिक इस चमत्कार को मंदिर की वास्तुकला और खगोलीय गणना का सुंदर संगम मानते हैं। वे इसे प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्र और वास्तुशास्त्र के गहरे ज्ञान का उदाहरण मानते हैं। फिर भी यह एक बड़ा सवाल बना रहता है कि इतनी सूक्ष्म और सटीक गणना बिना आधुनिक तकनीक के कैसे संभव हुई। इस प्रश्न ने इस मंदिर को विज्ञान और आध्यात्म के बीच एक रहस्यमयी पुल बना दिया है।
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