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पाली में शीतला मां का चमत्कार, विज्ञान ने भी टेके घुटने, लाखों लीटर पानी समा लेती है मंदिर में बनी यह ओखली

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भारत चमत्कारों और आस्था की भूमि है। यहां मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं होते, बल्कि कई रहस्यों, मान्यताओं और अलौकिक घटनाओं का केंद्र भी होते हैं। ऐसा ही एक मंदिर है राजस्थान के पाली जिले के भाटूण्ड गांव में स्थित शीतला माता मंदिर, जहां का रहस्य विज्ञान के लिए अब तक अनसुलझा है। इस मंदिर में एक ऐसा घड़ा (ओखली) है जो लाखों लीटर पानी पी चुका है, लेकिन आज तक कभी भरा नहीं।

घड़ा जो कभी नहीं भरता

इस मंदिर में एक छोटा सा घड़ा है जिसकी गहराई और चौड़ाई लगभग आधा फुट है। लेकिन इसकी क्षमता को लेकर जो मान्यता है, वह किसी को भी चौंका सकती है। भक्तों का कहना है कि अब तक इस घड़े में 50 लाख लीटर से अधिक पानी डाला जा चुका है, लेकिन यह घड़ा आज भी उतना ही खाली दिखाई देता है।

इस अद्भुत घटना के कारण हर साल देशभर से हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं, केवल यह चमत्कार अपनी आंखों से देखने के लिए। वैज्ञानिकों ने भी इस पर रिसर्च की कोशिश की, लेकिन कोई ठोस कारण नहीं मिल पाया कि पानी कहां जाता है।

साल में सिर्फ दो बार खुलता है घड़ा

इस चमत्कारी घड़े को एक भारी पत्थर से ढका गया है और इसे साल में केवल दो बार हटाया जाता है – पहली बार शीतला सप्तमी पर और दूसरी बार ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को। इन दो खास अवसरों पर गांव में मेला भी लगता है और भक्त बड़ी श्रद्धा से कलशों में भर-भरकर घड़े में पानी डालते हैं। कई महिलाएं तो सैकड़ों लीटर पानी घड़े में समर्पित करती हैं, लेकिन घड़ा कभी भी ऊपर तक नहीं भरता।

मंदिर की मान्यता – राक्षस और मां शीतला की कथा

इस मंदिर से जुड़ी एक लोककथा बेहद प्रचलित है। लगभग 800 साल पहले, इस क्षेत्र में बाबरा नामक राक्षस का आतंक था। गांववालों का मानना था कि जब भी किसी ब्राह्मण के घर शादी होती, वह राक्षस दूल्हे को मार डालता। इससे पूरा इलाका भयभीत था।

गांववासियों ने इस संकट से छुटकारा पाने के लिए मां शीतला की आराधना की। माता प्रसन्न हुईं और एक ब्राह्मण के स्वप्न में प्रकट होकर कहा कि जब उसकी बेटी की शादी होगी, वह स्वयं कन्या के रूप में आकर राक्षस का अंत करेंगी।

शादी वाले दिन, एक छोटी कन्या बनकर शीतला माता स्वयं पधारीं और विवाह मंडप में ही राक्षस को अपने घुटनों से दबाकर मार डाला। मरते समय राक्षस ने माता से एक वरदान मांगा – कि गर्मी में उसे अत्यधिक प्यास लगती है, इसलिए वर्ष में दो बार भक्तों के हाथों से पानी पिलाया जाए। माता ने यह वरदान स्वीकार कर लिया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है – घड़े में पानी भरने की, जो कभी नहीं भरता।

आखिर पानी जाता कहां है?

सबसे बड़ा सवाल यही है – इस घड़े में डाला गया पानी आखिर जाता कहां है? घड़ा न तो बहुत गहरा है, और न ही इसमें कोई नली या छेद नजर आता है। वैज्ञानिकों और स्थानीय प्रशासन ने भी इस रहस्य को जानने के लिए कई बार प्रयास किए, लेकिन कोई स्पष्ट कारण सामने नहीं आया।

कुछ लोगों का मानना है कि घड़ा किसी प्राकृतिक जलसंचय प्रणाली से जुड़ा हो सकता है, जबकि कुछ इसे मां शीतला की कृपा और राक्षस के वरदान से जुड़ा चमत्कार मानते हैं।

भक्ति और चमत्कार का मिलन

शीतला माता मंदिर में ना केवल रहस्य है, बल्कि गहरी भक्ति भावना भी है। भक्त मानते हैं कि माता यहां आज भी साक्षात मौजूद हैं और उनकी पूजा से जीवन में शांति, सुख और रोगों से मुक्ति मिलती है। मंदिर में जब घड़े में पानी डालने का क्रम चलता है, तो वातावरण मंत्रों, भजनों और श्रद्धा से गूंज उठता है।

घड़े के दर्शन के बाद पुजारी माता के चरणों में दूध चढ़ाते हैं और तभी घड़ा ऊपर तक भर जाता है। यह भी एक अनोखी बात है – जहां लाखों लीटर पानी समा जाता है, वहीं कुछ लीटर दूध उसे भर देता है।

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