आगामी पंचायत चुनाव को लेकर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में सबसे अधिक चर्चा आरक्षण व्यवस्था को लेकर हो रही है। हर गांववासी यह जानना चाहता है कि उनकी ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत या जिला पंचायत किस वर्ग के लिए आरक्षित होगी। यह उत्सुकता इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि आरक्षण से ही तय होता है कि चुनाव में कौन उम्मीदवार किस पद के लिए दावेदारी कर सकेगा।
आरक्षण का निर्धारण करेगा आधार वर्षपंचायत चुनाव में सीटों का आरक्षण किस वर्ग (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग व महिला) के लिए होगा, यह तय होता है आरक्षण के लिए निर्धारित आधार वर्ष के अनुसार। इसी आधार वर्ष के आंकड़ों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक पंचायत पद की सीट को आरक्षित या अनारक्षित किया जाता है।
इस माह के अंत तक आ सकता है प्रस्तावसूत्रों के अनुसार, पंचायतीराज विभाग इस संबंध में एक विस्तृत प्रस्ताव तैयार कर रहा है, जिसे जुलाई माह के अंत तक राज्य कैबिनेट के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। प्रस्ताव में यह उल्लेख होगा कि आगामी चुनावों में कौन-सा आधार वर्ष मान्य होगा, जिस पर पूरे प्रदेश के आरक्षण की गणना की जाएगी।
पिछली बार 2015 को माना गया था आधारज्ञात हो कि पिछली बार पंचायत चुनावों में 2015 को आधार वर्ष माना गया था, और उसी के अनुसार सीटों का आरक्षण हुआ था। इस बार माना जा रहा है कि 2021 या 2022 को आधार वर्ष के रूप में चुना जा सकता है, ताकि जनसंख्या और सामाजिक स्थिति के हालिया आंकड़ों के अनुसार आरक्षण का निर्धारण हो।
ग्रामीणों में जागरूकता और बेचैनीराज्य भर के ग्रामीण क्षेत्रों में यह मुद्दा बातचीत का प्रमुख विषय बना हुआ है। लोग अपने-अपने गांवों की पिछली स्थिति और नए संभावित आरक्षण को लेकर चर्चा कर रहे हैं। वहीं, राजनीतिक रूप से सक्रिय लोगों ने आरक्षण की दिशा जानने के लिए जनपद व ब्लॉक स्तर पर संपर्क तेज कर दिया है।
विशेषज्ञों की रायचुनाव विशेषज्ञों का मानना है कि आधार वर्ष तय करने में न्यायिक और प्रशासनिक संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी होता है, ताकि किसी वर्ग को बार-बार आरक्षित या वंचित न किया जाए।
“आरक्षण का उद्देश्य समान भागीदारी सुनिश्चित करना है, लेकिन यह तभी सफल होगा जब प्रक्रिया पारदर्शी हो और सभी पक्षों को विश्वास में लिया जाए,” एक चुनाव विश्लेषक ने कहा।
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