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ममता सरकार का सख्त आदेश : नाबालिग यौन उत्पीड़न पीड़ितों की होगी अविलंब चिकित्सीय जांच

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कोलकाता, 3 मई . पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य के सभी सरकारी चिकित्सा संस्थानों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि यौन उत्पीड़न के नाबालिग पीड़ितों की तुरंत चिकित्सीय जांच की कानूनी प्रक्रिया का कड़ाई से पालन किया जाए. यह जांच पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज होने से पहले भी कराई जा सकेगी.

राज्य स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि बच्चों के यौन अपराधों से संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) के तहत पीड़ित बच्चों की जांच को लेकर कई बार महिला चिकित्सकों के अभाव में परेशानियां सामने आ रही थीं. इसे देखते हुए राज्यभर के मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों के प्रिंसिपल, चिकित्सा अधीक्षक-सह-उपप्राचार्य (एमएसवीपी) और सभी जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओएच) को सख्त निर्देश दिए गए हैं.

आदेश में स्पष्ट किया गया है कि किसी भी ऐसे बच्चे की चिकित्सीय जांच, जिसके साथ अधिनियम के तहत कोई अपराध हुआ है, धारा 164ए आपराधिक दंड संहिता, 1973 (1973 का 2) के तहत एफआईआर या शिकायत दर्ज न होने की स्थिति में भी की जानी आवश्यक है.

राज्य स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भले ही पहले से ही यह कानूनी प्रावधान मौजूद है, लेकिन कई मामलों में इसके अनुपालन में लापरवाही की शिकायतें मिली थीं. उन्होंने कहा, यह नया आदेश उसी प्रावधान की पुनः याद दिलाने के लिए जारी किया गया है ताकि भविष्य में सख्ती से इसका पालन हो.

आदेश में यह भी साफ किया गया है कि यदि पीड़ित बच्ची है तो उसकी चिकित्सीय जांच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जाएगी. साथ ही जांच के दौरान पीड़ित के माता-पिता या ऐसा कोई व्यक्ति, जिस पर बच्चा विश्वास करता हो, उसकी उपस्थिति अनिवार्य होगी.

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल बीते वर्ष के मध्य से ही यौन उत्पीड़न और हत्या के कई मामलों को लेकर चर्चा में रहा है. इन मामलों में कई बार पीड़ित नाबालिग ही रहे हैं. सबसे चर्चित मामला अगस्त 2024 में कोलकाता के आर. जी. कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल परिसर में एक जूनियर महिला डॉक्टर के साथ हुए वीभत्स बलात्कार और हत्या का था, जिसने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया था.

/ ओम पराशर

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