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हरदा : आदिवासी बच्चों के लिए छात्रावास आज भी दिवास्वप्न बना

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हरदा, 6 जुलाई (Udaipur Kiran) । हरदा जिले के आदिवासी बाहुल्य टिमरनी ब्लाक अंतर्गत आदिवासी बच्चों को तहसील मुख्यालय में रहकर पढ़ाई करने के लिए छात्रावास की सुविधा नहीं है। वर्षों से छात्रावास खोलने के लिए आवाज उठाई जा रही है किंतु उसे नजरंदाज किया जा रहा है। तत्कालीन जिला कलेक्टर श्रीकांत बनोठ के समय यहां मांग जोड़ पकड़ी थी और आपके द्वारा इस दिशा में पहल भी शुरू कर दी गई थी, किंतु स्थानांतरण हो जाने से मामला दब गया है। जो आज भी दबा हुआ है। कक्षा 9वीं से 12वीं तक बच्चों को छात्रावास की सुविधा से वंचित रखा गया है। कॉलेज में भी छात्रावास नहीं है। एक प्राइवेट भवन में छात्रावास संचालित है। सरकारी भवन छात्रावास संचालित कराने की मांग की जा रही है, किंतु आदिवासी छात्रों के हक हित की मांग की घोर अनदेखी की जा रही है।

आदिवासी बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ –

कायदा, बोरी में हायर सेकेंडरी स्कूल है। प्री मैट्रिक छात्रावास है। दूर दराज की लड़कियां 8वीं तक तो छात्रावास में रहकर पढ़ाई करती है। 9वीं से 12वीं तक छात्रावास की सुविधा नहीं होने के कारण पढ़ाई छोड़कर घर बैठ जाती है। पोस्ट मैट्रिक बालक बालिका छात्रावास अनुसूचित जनजाति के लिए लंबे समय से खोलने की मांग की जा रही है उस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। अनुसूचित जाति एस.सी. के छात्रावास में 10 फीसदी एस.टी. के बच्चों को रखने का आदेश था। चालू सत्र में उसे भी खत्म कर दिया। लिहाजा बच्चे पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो जायेंगे। 50-60 किलोमीटर दूर तक क्षेत्र फैला है। लंबी दूरी होने के कारण 9 से 12वीं और कॉलेज की पढ़ाई के लिए तहसील मुख्यालय आकर पढ़ाई करना पड़ता है। किराये से कमरा लेकर अन्य खर्चो का निर्वहन करना बहुत कठिन है। गरीबी के कारण पढ़ाई नहीं करापाते और अंतत: पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं। लंबे समय से यह स्थिति विद्यमान है। सब की जानकारी में भी यह है इसके बाद भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

खेल में देश-विदेश में जीते मेडल –

आदिवासी बाहुल्य टिमरनी के होनहार प्रतिभाशाली आदिवासी बच्चे देश-विदेश में मेडल जीतकर जिले का नाम देश-विदेश में रोशन किया, इसके बाद भी आदिवासी बच्चों के हकहित की मांग की घोर अनदेखी की जा रही है। आर्थिक तंगी के कारण पढ़ाई छोड़ने वालों की लिस्ट तैयार करवाई जाये तो चौंकाने वाली स्थिति सामने आ जायेगी।

छात्रावास से पढ़ाई छोड़ने वालों का ग्राफ गिरेगा –

आठवीं तक पढ़ाई करने के बाद कक्षा 9वी से अधिकांश बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं। पिछले कई सत्रों की कक्षा 9वीं में पढ़ाई छोड़ने वालों की संख्या पर नजर दौड़ाई जाये तो अधिकांश बच्चे छात्रावास के कारण ही पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं। आर्थिक तंगी और सुरक्षा के माहौल के कारण पढ़ाई करवाना पालक पसंद नहीं करते हैं। अब तक जनप्रतिनिधि पुरजोर तरीके से आवाज उठाते तो छात्रावास खुलने का मार्ग प्रशस्त हो जाता किंतु दुर्भाग्य की बात यह है कि इस तरफ ध्यान नहीं देने से मामला दबा हुआ है।

जयस प्रभारी ने उठायी आवाज –

जयस प्रभारी रोहित कुमरे आदिवासी बच्चों के हकहित की आवाज उठाते हुए प्राथमिकता के आधार पर आदिवासी बच्चों के लिए छात्रावास खुलवाया जाय और कॉलेज में भी किराये के भवन की बजाय सरकारी भवन में छात्रावास संचालित करने की पहल की जाये। छात्रावास नहीं होने से प्रतिभाओं का हनन हो रहा है। पढ़ाई छोड़ने के कारण प्रतिभाएं उभर कर सामने नहीं आ पा रही है।

हरदा विधानसभा क्षेत्र से सविधायक, डॉ आर के दोगने, आदिवासी बच्चों के लिए टिमरनी खिरकिया मोरगढ़ी मगरधा हंडिया आदि स्थानों पर छात्रावास होना चाहिए ताकि बच्चे पढ़ाई कर अपना सुनहरा भविष्य बना सके सरकार को इस संबंध में प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देना चाहिए।

हरदा जनजातीय कार्य विभाग के जिला संयोजक श्रीमती पारूल जैन, आपके द्वारा छात्रावास नहीं होने के कारण आदिवासी बच्चो के पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर होने का मामला संज्ञान में लाया गया है इस संबंध में कारगर कदम उठाते हुए शासन को प्रस्ताव भेजा जायेगा।

(Udaipur Kiran) / Pramod Somani

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