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गूगल आपकी वजह से ऐसे बन गया सर्च की दुनिया का 'बादशाह'

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ऑनलाइन की दुनिया में गूगल हर जगह है. हर रोज़ गूगल पर करोड़ों सवाल पूछे जाते हैं. गूगल दुनिया की बड़ी कंपनियों में से एक बन गई है.

गूगल शुरू में उसूलों और उस हिसाब से काम करने के दावे करती थी.

लेकिन इस साल अमेरिका की एक अदालत ने कहा कि बाज़ार में अपनी बड़ी मौजूदगी का गूगल कंपनी ग़लत फ़ायदा उठा रही है और इस कारण दूसरी कंपनियों का टिकना असंभव हो गया है.

जज जल्द ही फ़ैसला सुनाएंगे कि गूगल कंपनी को क्या सजा दी जाए?

कई लोगों का मानना है कि गूगल इतनी बड़ी और शक्तिशाली कंपनी हो गई है कि उसे नियंत्रित करना बहुत मुश्किल है.

इस सप्ताह दुनिया जहान में हम यही जानने की कोशिश करेंगे कि क्या गूगल पर भरोसा किया जा सकता है?

image BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें गूगल का राज

गूगल इंटरनेट की दुनिया में इस कदर फैला हुआ है कि अब यह सोचना भी मुश्किल है कि गूगल से पहले इंटरनेट पर सर्च कैसी होती थी.

पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता पत्रकार डेविड वाइज़ ने गूगल को शुरू से फलते- फूलते देखा है और वो गगूल के इतिहास पर आधारित किताब ‘गूगल स्टोरी’ के लेखक भी हैं.

वो कहते हैं कि स्टैनफ़र्ड यूनिवर्सिटी में पीएचडी के दो छात्र लैरी पेज और सर्गेइ ब्रिन इंटरनेट सर्च की क्वालिटी से ख़ुश नहीं थे इसलिए उन्होंने गूगल सर्च इंजन बनाया.

डेविड वाइज़ ने कहा, “90 के दशक के आख़िरी सालों के दौरान गूगल से पहले याहू सर्च और अल्टाविस्टा सर्च मौजूद थे. उन पर सर्च के रिज़ल्ट आने में काफ़ी समय लगता था और जो सर्च रिज़ल्ट आते थे उसमें विज्ञापन होते थे. विज्ञापन और रिज़्लट के बीच फ़र्क करना मुश्किल हो जाता था. इन दोनों ने गूगल सर्च इंजन बना कर इंटरनेट सर्च को तेज़ और विश्वसनीय बनाया. उन्होंने इंटरनेट पर उपलब्ध वेब पन्नों को उनके महत्व के अनुसार रैंक किया या श्रेणी में ढाला जो पहले किसी ने नहीं किया था.”

उनका मक़सद कोई कंपनी बनाना या व्यापार करना नहीं था बल्कि केवल इंटरनेट पर सर्च को बेहतर बनाना था.

डेविड वाइज़ के अनुसार- वो इस सर्च इंजन को स्टैनफ़र्ड यूनिवर्सिटी को बेच कर अपनी पीएचडी पूरी करना चाहते थे, लेकिन उसे कोई ख़रीदना नहीं चाहता था. सभी ने कहा कि सर्च का कोई महत्व नहीं है. याहू और डिजीटल इक्वीपमेंट ने उनके सर्च इंजन को ख़रीदने से इंकार कर दिया. कोई उसे पांच लाख डॉलर में ख़रीदने को भी तैयार नहीं था. ना ही उसे और विकसित करने के लिए निवेश करने को राज़ी था.

मगर फिर सन माइक्रोसिस्टिम के संस्थापक एंडी बेक्टेलशाइन ने गूगल सर्च इंजन को आज़मा कर देखा और वो उससे काफ़ी प्रभावित हुए. उन्होंने लैरी पेज और सर्गेइ ब्रिन को एक लाख डॉलर का चेक थमा दिया.

डेविड वाइज़ कहते हैं कि व्यापार के लिए यह काफ़ी नही था इसलिए अधिक निवेश के लिए लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन सिलिकॉन वैली गए, जहां क्लाइनर पर्किंस ने एक करोड़ डॉलर और सुकाय कैपिटल कंपनी ने भी एक करोड़ डॉलर निवेश कर दिया.

लेकिन अब इस व्यापार को चलाने के लिए लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन को विज्ञापनों की ज़रूरत थी.

हालांकि कि वो शुरू से ही विज्ञापनों के ख़िलाफ़ थे.

डेविड वाइज़ ने बताया, ''जब लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन छात्र थे, तब वो विज्ञापनों को बहुत बुरा मानते थे और गूगल सर्च इंजन पर विज्ञापन नहीं देना चाहते थे. मगर विज्ञापनों के बिना व्यापार को आगे बढ़ाने की कोई अन्य योजना भी उनके पास नहीं थी.''

वो बोले, ''तब इसराइली उद्योगपति योसी बार्ड ने उन्हें कहा कि वो गूगल पेज पर एक नीली लाइन खींच दें जिसके एक तरफ़ सर्च के रिज़ल्ट होंगे और दूसरी ओर विज्ञापन होंगे. इससे लोग आसानी से रिज़ल्ट और विज्ञापनों में फ़र्क कर पाएंगे. उन्होंने इस तकनीक का इस्तेमाल किया और इसी के साथ गूगल सर्च इंजन से आगे बढ़ कर एक बड़े उद्योग में तब्दील होने लगा.''

अब गूगल पेज के दाहिने हिस्से में आने वाले विज्ञापनों से कंपनी अरबों डॉलर कमाती है. अब विज्ञापन देने वाली कंपनियां यह भी जान सकती हैं कि कौन उनका विज्ञापन देख रहा है और उनमें से कितने लोग उनके उत्पाद ख़रीद रहे हैं.

गूगल कंपनी विज्ञापनों के ज़रिए सालाना 200 अरब डॉलर कमाती है.

डेविड वाइज़ ने कहा, “जब गूगल कंपनी शुरू की गयी थी तो उसका सिद्धांत साफ़ था कि बुराई से दूर रहें. वो ईमानदारी और नैतिकता के साथ व्यापार करना चाहती थी. उसका उद्देश्य लोगों तक सभी जानकारी उपलब्ध कराना था. लेकिन जैसे जैसे कंपनी बढ़ती गयी उसके लिए अपने नैतिक सिद्धांत पर अड़े रहना मुश्किल होता चला गया.”

ये भी पढ़ें- image law.stanford.edu स्टैनफ़र्ड लॉ स्कूल के प्रोफ़ेसर डगलस मेलामेड ने कहा कि कोई कंपनी अच्छी क्वालिटी के उत्पाद बना कर बाज़ार में वर्चस्व कायम करता है तो कोई बुराई नहीं है विश्वास और प्रशासन

स्टैनफ़र्ड लॉ स्कूल के प्रोफ़ेसर और एंटी ट्रस्ट लॉ यानी व्यापार में प्रतिस्पर्धा संबंधी कानून के विशेषज्ञ डगलस मेलामेड का कहना है, ''कोई कंपनी अच्छी क्वालिटी के उत्पाद बनाकर बाज़ार में वर्चस्व कायम करे तो उसमें कोई बुराई नहीं है, लेकिन अगर कोई कंपनी अपने ग्राहकों को विशेष फ़ायदा पहुंचाए बिना अपने प्रतिस्पर्धियों के लिए बाज़ार मे रहना मुश्किल कर दे तो ये एंटी ट्रस्ट एक्ट के तहत ग़ैर-कानूनी है. और गूगल के ख़िलाफ़ यही मामला वॉशिंगटन की एक अदालत में दर्ज हुआ था.''

“गूगल केस में यह कहा गया है कि गूगल ने अपने सर्च इंजन को एक बेहतरीन उत्पाद तो बनाया है लेकिन उसने ऐसे कई कदम उठाए हैं जिससे प्रतिस्पर्धी कंपनियों के सर्च इंजन के लिए गूगल का मुकाबला करना मुश्किल हो गया है.”

इस केस में दलील दी गई है कि बाज़ार में बिकने वाले कई मोबाइल फ़ोन और टैबलेट आदि में गूगल सर्च इंजन डीफॉल्ट के तौर पर पहले से ही इंस्टॉल होता है, इसलिए जब हम उस पर कुछ सर्च करते हैं तो वो सर्च गूगल के पास जाती है ना कि डॉट डॉट गो या माइक्रोसॉफ़्ट के सर्च इंजन बिंग पर. लोग चाहें तो ब्राउज़र सेटिंग में जा कर डिफॉल्ट सर्च इंजन को बदल सकते हैं.

मगर क्या बहुत से लोग ऐसा वाक़ई में करते हैं?

डगलस मेलामेड कहते हैं, “गूगल ने मोबाइल फ़ोन, टैबलेट बनाने वाली कंपनियों को अपनी डिवाइस मे गूगल को डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन बना कर इंस्टॉल करने के लिए अरबों डॉलर दिए हैं. अदालत ने पाया कि यह गूगल के प्रतिस्पर्धी सर्च इंजनों के लिए बाज़ार में पैर जमाने में बाधा खड़ी करता है.”

गूगल ने एप्पल कंपनी को अपने डिवाइसों पर गूगल को डिफॉल्ट सर्च इंजन बनाने के लिए अरबों डॉलर दिए हैं.

डगलस मेलामेड कहते हैं कि यह गूगल के लिए फ़ायदेमंद निवेश रहा है.

वो कहते हैं कि गूगल सीधे ग्राहकों से पैसे तो नहीं लेता लेकिन उनका ध्यान आकर्षित करता है और उनका डाटा लेता है. इस डाटा का इस्तेमाल विज्ञापनों के लिए होता है.

डगलस मेलामेड कहते हैं कि ऐसा तो नहीं लगता कि गूगल को नियंत्रित करने के लिए अदालत उसे तोड़ कर छोटी कंपनियों में बाँटने का आदेश देगी लेकिन हो सकता है कि गूगल को कुछ सालों तक अपने यूज़र डाटा को मामूली फीस के बदले अपने प्रतिस्पर्धियों के साथ साझा करना पड़े.

एप्पल का कहना है कि गूगल सर्च इंजन एक अच्छा प्रोडक्ट है और गूगल का कहना है कि अगर लोग चाहें तो वो आइफ़ोन के ब्राउज़र में जा कर किसी और सर्च इंजन को डिफॉल्ट सर्च इंजन बना सकते हैं.

मगर गूगल के ख़िलाफ़ यही एक मामला नहीं है.

गूगल के ख़िलाफ़ अमेरिका के न्याय मंत्रालय ने यह कहते हुए केस दर्ज किया है कि गूगल ग़लत तरीके से विज्ञापन के बाज़ार पर शिकंजा कसे हुए है.

इस मामले की सुनवाई इसी महीने वर्जीनिया की एक अदालत में शुरू होने वाली है.

इस मामले पर डगलस मेलामेड कहते हैं कि गूगल ने विज्ञापन के बाज़ार को अपने सर्च इंजन के साथ जोड़ कर विज्ञापन के दूसरे प्लेटफॉर्मों के लिए बाधाएं खड़ी कर दी हैं. इस केस के फ़ैसले से विज्ञापन के बाज़ार में बड़े बदलाव आ सकते हैं और यह भी संभव है कि विज्ञापन के नए प्लेटफॉर्मों को पांव जमाने की जगह मिले और उन्हें भी फ़ायदा पहुंचे.

image Getty Images लोगों के बीच गूगल काफी लोकप्रिय है जानकारी का एकाधिकार

कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी के बर्कले सेंटर फ़ॉर ह्यूमन कंपैटिबल एआई में वरिष्ठ वैज्ञानिक जोनाथन स्ट्रे कहते हैं कि गूगल की लोकप्रियता की एक वजह यह है कि वो अपने यूज़रों के सर्च इंजन के इस्तेमाल से लगातार सीखता रहता है.

“सभी सर्च इंजनों की तरह गूगल भी इंटरनेट पर मौजूद सभी पन्नों को पढ़ता है, उनकी एक कॉपी बनाता है और उनकी रैंकिंग करता है. साथ ही वह देखता है कि और लोग उन पन्नों के बारे में क्या कह रहे हैं और यूज़र की उन पन्नों के बारे मे कैसी प्रतिक्रिया है. विज्ञापनों के विपरीत सर्च रिज़ल्ट को यूज़र के फ़ायदे को ध्यान में रख कर पेश किया जाता है.”

गूगल अक्सर यूज़र की प्रोफ़ाइल के हिसाब से सर्च रिज़ल्ट देता है.

जोनाथन स्ट्रे कहते हैं, ''गूगल जानता है कि आप कौन हैं और कहां रहते हैं. मिसाल के तौर पर अगर आप दिल्ली में बैठकर इलेक्ट्रीशियन ढूंढना चाहते हैं तो वो आपको आपके आस पास के इलाके के इलेक्ट्रीशियन के रिज़ल्ट देगा ना कि अमेरिका के किसी शहर के. कई बार वो आपकी पुरानी सर्च को ध्यान में रख कर भी सर्च रिज़ल्ट देता है. इसका मतलब है कि गूगल अपने यूज़रों का काफ़ी डाटा इकठ्ठा कर लेता है.''

जोनाथन स्ट्रे का यह भी कहना है कि गूगल हर सर्च का रिकॉर्ड रखता है.

वो यह भी जानता है कि यूज़र रिज़ल्ट में दिए गए लिंक को खोलकर वहां कितनी देर ठहरता है. अगर यूज़र लिंक खोलकर जल्द ही उस पन्ने को बंद कर दे तो गूगल समझ जाता है कि वो पन्ना यूज़र की सर्च के लिहाज़ से उपयोगी नहीं है.

इसका मतलब है कि गूगल हमारी सर्च के हिसाब से रिज़ल्ट को एडजस्ट करता है. इससे कई लोगों ने यह संदेह भी व्यक्त किया है कि गूगल हमें वो रिज़ल्ट नहीं देता है जो हम चाहते हैं बल्कि वो रिज़ल्ट देता है जो गूगल चाहता है कि हम देखें.

मगर जोनाथन स्ट्रे कहते हैं, ''ऐसी संभावना कम है. लेकिन कौन से पन्ने सर्च रिज़ल्ट की रैंकिंग या श्रेणी में सबसे ऊपर रहें, कौन से नीचे रहें- यह कैसे तय होता है? इस बारे में गूगल चुप्पी साध लेता है. कुछ लोगों को यह संदेह भी है कि वह कुछ कंपनियों या पेज मेकरों से पैसे के बदले में उनके पन्नों को सर्च रिज़ल्ट में ऊपर रखता है.''

मगर यह साबित करना मुश्किल है.

जोनाथन स्ट्रे कहते हैं कि सभी कंपनियों के लिए ज़रूरी है कि वो यूज़र और ग्राहकों के हितों को ध्यान में रख कर सामाजिक ज़िम्मेदारी के साथ काम करें. मगर कई बार यह कंपनियां आर्थिक हितों को तरजीह देती हैं.

इस पर जोनाथन स्ट्रे ने कहा , “मुझे लगता है कि इस पर सरकारी नियंत्रण की ज़रूरत है. यह कैसे हो- इस पर दशकों से बहस चल रही है, क्योंकि इसे सरकार की ओर से व्यापार और अभिव्यक्ति में हस्तक्षेप के रूप में भी देखा जा सकता है.”

ये भी पढ़ें- image Getty Images गूगल कंपनी विज्ञापनों के ज़रिए सालाना 200 अरब डॉलर कमाती है गूगल का भविष्य

आर्थिक और व्यापारिक प्रतिस्पर्धा मामलों की विशेषज्ञ क्रिस्टीना कफ़ारा कहती हैं कि गूगल के ख़िलाफ़ यूरोपीय संघ ने भी चुनौती दी है लेकिन यह फ़ैसला इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अमेरिका की ही अदालत ने सुनाया है.

“अगर अमेरिका की ही अदालत यह कहती है कि हमारी एक बेहतरीन कंपनी जिसे दुनियाभर में अमेरिकी कंपनी के रूप में जाना जाता है वो ग़लत तरीके से काम कर रही है तो इस फ़ैसले का महत्व कहीं ज़्यादा बढ़ जाता है.”

लेकिन क्रिस्टीना कफ़ारा आगाह करती हैं कि गूगल सर्च इंजन के बाज़ार और एड टेक यानी विज्ञापन से जुड़ी टेक्नोलॉजी में इतनी मज़बूत जगह बना चुकी है कि उसे हिलाना आसान नहीं है.

वर्जीनिया में गूगल के ख़िलाफ़ शुरू होने जा रहे मुकदमे का संबंध गूगल की विज्ञापन संबंधी टेक्नोलॉजी से है.

क्रिस्टीना कफ़ारा ने बताया कि कई सालों से इंटरनेट सर्च में यूरोप में गूगल का मार्केट शेयर या हिस्सा 98 प्रतिशत है और अमेरिका में 93 प्रतिशत पर जमा हुआ है.

वो कहती हैं कि सवाल यह है कि गूगल की जगह कौन लेगा? एड टेक और विज्ञापन छापने वाली कंपनियां काफ़ी हद तक गूगल पर निर्भर हैं. इंटरनेट पर कोई पन्ना खोल कर देख लें तो उस पर विज्ञापन गूगल चलाता है.

इस पर गूगल का कहना है कि उनके एडवरटाइज़र कई प्लेटफॉर्म पर विज्ञापन प्रकाशित करते हैं और वो गूगल की टेक्नोलॉजी इस्तेमाल करने पर बाध्य नहीं हैं.

मगर विज्ञापन प्रकाशन से जुड़ी टेक्नोलॉजी में गूगल का वर्चस्व है. क्रिस्टीना कफ़ारा इसके लिए सरकारों को ज़िम्मेदार मानती हैं.

“हमने इन टेक्नोलॉजी कंपनियों को वर्चस्व कायम करने की छूट दे रखी है. यह विश्व राजनीति का हिस्सा है. अब उन पर अंकुश लगाना मुश्किल है क्योंकि जब यह कंपनियां दूसरी कंपनियों को ख़रीद कर एकाधिकार पा जाती हैं तो उन्हें नियंत्रण में रखना लगभग असंभव हो जाता है.”

गूगल कंपनी इसका खंडन करते हुए कहती है कि उसे प्रतिस्पर्धियों से कड़ी टक्कर मिल रही है.

अमेरिका की अदालत ने ये भी कहा कि गूगल का सर्च दूसरे इंजनों से बेहतर है.

गूगल के अंतरराष्ट्रीय मामलों के अध्यक्ष केंट वॉकर ने कहा है कि कंपनी अदालत के फ़ैसले को चुनौती देगी.

अब उस सवाल पर लौटते हैं, जो शायद लोगों के मन में हो सकता है.

क्या गूगल पर भरोसा कर सकते हैं?

फ़िलहाल तो लगता है कि हमारे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं है. कई टेक्नोलॉजी कंपनियों की तरह गूगल की कंपनी भी इतनी शक्तिशाली हो गई है कि सरकारों के लिए भी उस पर अंकुश लगाना मुश्किल है.

दूसरी बात यह कि गूगल बहुत ही लोकप्रिय है. रोज़ करोड़ों सवाल गूगल पर जब पूछे जाते हैं तो वो इसकी वजह इसका सर्च इंजन बेहतर होना है.

हालांकि गूगल वो कंपनी अब नहीं रह गई, जिसे लैरी पेज और सर्गेई ब्रिन ने बनाया था.

एक तरह से कभी विज्ञापनों के ख़िलाफ़ बना गूगल अब लगभग हर पल विज्ञापन आप तक पहुंचा रहा है या आपकी जानकारियों को विज्ञापन देने वाली कंपनियों तक पहुंचा रहा है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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